SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर का नाम जैन समाज में अल्पमूल्य में सत्साहित्य उपलब्ध कराने के लिए विख्यात है। संस्था का प्रयास नितनूतन साहित्य जन-जन तक पहुँचाने का रहा है। प्रस्तुत प्रकाशन 'जिनधर्म विवेचन' ब्र. यशपाल जैन की नवीनतम कृति है, आशा है यह कृति सदा की भाँति समाज में समुचित समादर प्राप्त करेगी। यह कृति का पूर्वार्द्ध है, इसमें मुख्यरूप से द्रव्य-गुण-पर्याय का ही विवेचन किया गया है। विषय को सुगम बनाने के उद्देश्य से प्रश्नोत्तर शैली का प्रयोग किया गया है, आशा है पाठक आगम, युक्तियों व उदाहरणों के माध्यम से विषयवस्तु को सरलता से समझ सकेंगे। ब्र. यशपालजी ने इस कृति के निर्माण में अथक परिश्रम किया है। कृति के उत्तरार्द्ध में वे सात तत्त्व, अहिंसा तथा हिंसा के भेद आदि समाहित करने हेतु कटिबद्ध हैं। वे सतत् साहित्य साधना में तल्लीन रहते हुए आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर हों - ऐसी भावना है। ___ डॉ. राकेश जैन शास्त्री, नागपुर ने मनोयोग पूर्वक सम्पादन कार्य कर कृति को व्यवस्थित रूप प्रदान किया है, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। मुद्रण व्यवस्था में सदा की भाँति प्रकाशन विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल का श्रम श्लाघनीय है। श्री कैलाश शर्मा ने कम्पोजिंग कार्य मनोयोगपूर्वक किया है, इसके लिए उन्हें धन्यवाद । आप सभी जिनधर्म विवेचन का हार्द समझकर द्रव्य गुण पर्याय का सही स्वरूप समझें, इसी भावना के साथ ह्न डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल महामंत्री
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy