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मोक्षमग में योगिजन यह बात निश्चय जानिये । जिनदेव पर शुद्धातमा में भेद कुछ भी है नहीं ॥२०॥ सिद्धान्त का यह सार माया छोड़ योगी जान लो । जिनदेव पर शुद्धातमा में कोई अन्तर है नहीं ॥२१॥ है पातमा परमातमा परमातमा ही प्रातमा । हे योगिजन यह जानकर कोई विकल्प करो नहीं ॥२२॥ परिमाण लोकाकाश के जिसके प्रदेश असंख्य हैं। बस उसे जाने प्रातमा निर्वाण पावे शीघ्र ही ॥२३॥ व्यवहार देहप्रमारण अर परमार्थ लोकप्रमारण है। जो जानते इस भांति वे निर्वाण पावें शीघ्र ही ॥२४॥