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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला उत्तर - नहीं, क्योंकि जीवद्रव्य में मोक्षदशा हुए बिना स्वभावव्यञ्जनपर्याय प्रगट नहीं होती, इसलिए जिसके स्वभाव व्यञ्जनपर्याय हो, उसे विभाव अर्थपर्याय नहीं हो सकती । 89 पुद्गलद्रव्य में भी स्वभावव्यञ्जनपर्याय हो, उस काल विभावअर्थपर्याय (स्कन्धरूप पर्याय) नहीं होती । प्रश्न 80 - चार प्रकार की पर्यायों में से तीन प्रकार की पर्यायें किसके होती है ? उत्तर - संसारी सम्यग्दृष्टि जीव के तीन प्रकार की पर्यायें होती हैं, क्योंकि - (1) क्षायिक सम्यक्त्वरूप स्वभावअर्थपर्याय किसी को चौथे गुणस्थान से होती है; और बारहवें गुणस्थान से चारित्रगुणी स्वभावअर्थपर्याय होती है; तेरहवें गुणस्थान से ज्ञानादिक की पूर्ण शुद्धअर्थपर्यायें होती हैं । (2) योगगुण की स्वभावअर्थपर्याय तेरहवें गुणस्थान के अन्त में प्रगट होती है। (3) चौदहवें गुणस्थान तक प्रदेशत्व गुण की विभावव्यञ्जन - पर्याय होती है, और - (4) शेष जिन-जिन गुणों का अशुद्ध परिणमन है, उनकी विभावअर्थपर्यायें चौदहवें गुणस्थान तक होती हैं । ( आत्मावलोकन, पृष्ठ 100-101) प्रश्न 81 - अरहन्त भगवान के विभावव्यञ्जनपर्याय होती है ? उत्तर - हाँ, क्योंकि उनके भी प्रदेशत्व गुण का अशुद्ध परिणमन है, और वह चौदहवें गुणस्थान के अन्त तक होता है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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