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________________ प्रकरण तीसरा उत्तर - (1) दो पृथक् परमाणु पृथक् रहते है, तब तक उनकी स्वभावव्यञ्जनपर्यायें समान होती हैं। स्वभावअर्थपर्यायें शुद्ध होने पर भी उनके स्पर्शादि गुणों के परिणमन में परस्पर अन्तर होता है। परमाणु का बन्धस्वभाव होने से उसमें पुनः स्कन्ध होने की योग्यता है; इसलिए अपने स्पर्श गुण के कारण वे बन्धदशा को प्राप्त करते हैं। (2) दो सिद्धात्माओं की परस्पर स्वभाव व्यञ्जनपर्यायें एकसी नहीं होती, किन्तु दो पृथक् परमाणुओं की व्यञ्जनपर्यायें एकसी होती है। जीव का मोक्षस्वभाव होने से - दो सिद्धात्माओं की स्वभाव अर्थपर्यायें सदैव एक समान शुद्ध परिणमित होती है, किन्तु दो पृथक् पुद्गल परमाणुओं में ऐसा नहीं होता। __सिद्धभगवान शुद्ध हुए सो हुए, फिर कभी भी बन्धदशा को प्राप्त नहीं होते, किन्तु पुद्गलपरमाणु पुनः-पुनः बन्धदशा को प्राप्त होते हैं। प्रश्न 78 - क्या आम्रफल की व्यञ्जनपर्याय उसके ऊपरी भाग में होती हैं ? उत्तर - नहीं, क्योंकि वह अनन्त परमाणुओं का पिण्ड है और उसके सम्पूर्ण भाग में उन-उन परमाणुओं की व्यञ्जनपर्याय हैं। प्रत्येक परमाणुद्रव्य की व्यवञ्जनपर्याय भी भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र हैं। प्रश्न 79 - जिसके स्वभावव्यञ्जनपर्याय हो, उसके विभाव -अर्थपर्याय होती है ? होती हो तो कारण बतलाइये?
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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