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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
आत्मा अनन्त ज्ञानानन्द शान्तिस्वरूप है - ऐसा मति में से बढ़ता हुआ तार्किक ज्ञान, वह श्रुतज्ञान है। भीतर स्वलक्ष्य में मन-इन्द्रियाँ निमित्त नहीं है। जीव उनसे अंशतः पृथक् हो, तब स्वतन्त्र तत्त्व का ज्ञान करके उसमें स्थिर हो सकता है।
(मोक्षशास्त्र, अध्याय -1, सूत्र 15 की टीका, प्रकाशक स्वा० मन्दिर) प्रश्न 62 - मतिज्ञान के विषयभूत पदार्थों के कितने भेद हैं ? उत्तर - दो भेद हैं - 1. व्यक्त और 2. अव्यक्त।
प्रश्न 63 - अवग्रहादिक ज्ञान दोनों प्रकार के पदार्थों में हो सकते हैं?
उत्तर - व्यक्त (प्रगटरूप) पदार्थ में अवग्रहादिक चारों ज्ञान होते हैं, परन्तु अव्यक्त (अप्रगटरूप) पदार्थ का मात्र अवग्रह ज्ञान ही होता है।
प्रश्न 64 - अर्थावग्रह किसे कहते हैं ?
उत्तर - व्यक्त (प्रगट) पदार्थ के अवग्रह ज्ञान को अर्थावग्रह कहते हैं।
प्रश्न 65 - व्यञ्जनावग्रह किसे कहते हैं ?
उत्तर - अव्यक्त (अप्रगट) पदार्थ के अवग्रह को व्यञ्जनावग्रह कहते हैं।
प्रश्न 66 - व्यञ्जनावग्रह, अर्थावग्रह की भाँति सर्व इन्द्रियों और मन द्वारा होता है या किसी अन्य प्रकार से?
उत्तर - व्यञ्जनावग्रह चक्षु और मन के अतिरिक्त अन्य सर्व इन्द्रियों से होता है।