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________________ 68 प्रकरण दूसरा ( 4 ) प्रमेयत्व गुण - सब द्रव्य - गणप्रमेय से बनते विषय हैं ज्ञानके, रुकता न सम्यग्ज्ञान पर से जानियों यों ध्यान से; आत्मा अरूपी ज्ञेय निज यह ज्ञज्ञन उसको जानता, है स्व-पर सत्ता विश्व में सुदृष्टि उनको जानता ॥ 4 ॥ (5) अगुरुलघुत्व गुण यह गुण अगुरुलघु भी सदा रखता महत्ता है महा, गुण-द्रव्य को पररूप यह होने न देता है अहा ! ; निज गुण पर्यय सर्व ही रहते सतत निजभाव में, कर्ता न हर्ता अन्य कोई यों लखे स्व-स्वभाव में ॥ 5 ॥ (6) प्रदेशत्व गुण - - प्रदेशत्व गुण की शक्ति से आकार द्रव्यों को धरे, जिनक्षेत्र में व्यापक रहे आकार भी स्वाधीन है; आकार हैं सबके अलग, हो लीन अपने ज्ञान में, जानों इन्हें सामान्य गुण रखो सदा श्रद्धान में ॥ 6 ॥ (ब्र० गुलाबचन्द्र जैन)
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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