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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
कहते हैं; अर्थात् स्वरूप रचना के सामर्थ्यरूप शक्ति को वीर्य गुण कहते हैं ।
( समयसार - 47 शक्तियों से )
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अर्थात्
पुरुषार्थरूप परिणामों के कारणभूत जीव की त्रिकाली शक्ति को वीर्य गुण कहते हैं।
प्रश्न 109 - भव्यत्व गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिस गुण के कारण आत्मा में सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र प्रगट करने की योग्यता रहती है, उस गुण को भव्यत्व गुण कहते हैं ।
[ भव्यत्व गुण सदैव भव्य जीवों में ही है और अभव्यत्व गुण सदैव अभव्य जीवों में हैं ।]
प्रश्न 110 - अभव्य गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर- जिस गुण के कारण आत्मा में सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र प्रगट करने की योग्यता नहीं होती, उसे अभव्यत्व गुण कहते हैं ?
प्रश्न 111 - जीवत्व गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर - आत्मद्रव्य के कारणभूत चैतन्यमात्र भावरूप भावप्राण का धारण करना जिसका लक्षण है, उस शक्ति को जीवत्व गुण कहते हैं ।
प्रश्न 112 - प्राण के कितने भेद हैं ?
उत्तर - दो भेद हैं- द्रव्यप्राण और भावप्राण ।
प्रश्न 113 - द्रव्यप्राण के कितने भेद हैं ?