________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
(2) प्रत्येक द्रव्य निरन्तर अपनी ही प्रयोजनभूत क्रिया करता है, इसलिए कोई द्रव्य एक समय भी अपने कार्य के बिना बेकार नहीं होता - ऐसा वस्तुत्वगुण बतलाता है ।
49
(3) प्रत्येक द्रव्य निरन्तर प्रवाह क्रम से प्रवर्तमान अपनी नयी-नयी अवस्थाओं को सदैव स्वयं ही बदलता है, इसलिए किसी के कारण पर्याय परिवर्तित हो या रुके - ऐसा पराधीन कोई द्रव्य नहीं है - ऐसा द्रव्यत्व गुण बतलाता है ।
(4) प्रत्येक द्रव्य में ज्ञात होने योग्यपना ( प्रमेयत्व गुण) होने के कारण ज्ञान से कोई अनजान (गुप्त) नहीं रह सकता; इसलिए कोई ऐसा माने कि हम अल्पज्ञों को नव तत्त्व क्या ? आत्मा क्या ? धर्म क्या ? यह सब ज्ञात नहीं हो सकता, तो उसकी वह मान्यता मिथ्या है, क्योंकि यदि यथार्थ समझ का पुरुषार्थ करे तो सत्य और असत्य का स्वरूप (सम्यक् मतिश्रुतज्ञान का विषय होने से ) उसके ज्ञान में अवश्य ज्ञात हो - ऐसा प्रमेयत्व गुण बतलाता है ।
(5) प्रत्येक द्रव्य का द्रव्यत्व नित्य व्यस्थित रहता है, इसलिए एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर सकता; पर्याय द्वारा भी कोई दूसरे पर असर, प्रभाव, प्रेरणा, लाभ-हानि कुछ नहीं
कर सकता ।
प्रत्येक द्रव्य अपनी क्रमबद्ध धारावाही पर्याय द्वारा अपने में ही वर्तता है । - इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य अपने में व्यवस्थित नितय मर्यादावाला होने से किसी द्रव्य को दूसरे की आवश्यकता नहीं होती - ऐसा अगुरुलघुत्व गुण बतलाता है।