________________ [xx] अपनी विनयाञ्जलि समर्पित करता हूँ। जिनके प्रताप से आज सम्पूर्ण देश-विदेश में जैनतत्त्वज्ञान के रहस्यों का उद्घाटन हुआ। पूज्य गुरुदेवश्री के सान्निध्य में रहकर इसी प्रश्नोत्तरमाला के आधार पर जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला के सात भागों के संकलनकर्ता, पण्डित कैलाशचन्द जैन अलीगढ़ के प्रति भी इस अवसर पर कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। जिनके सान्निध्य में इस प्रश्नोत्तरमाला सहित सातों भागों के अध्ययन का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस अवसर पर गुरुदेवश्री के अनन्य शिष्य बाल ब्रह्मचारी हेमन्तभाई गाँधी, सोनगढ़; श्री अनन्तराय सेठ, मुम्बई; श्री पवन जैन, अलीगढ़ के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। जिन्होंने समय-समय पर अपने उपयोगी सुझावों से मुझे लाभान्वित किया, साथ ही जिनवाणी के इस कार्य में निरन्तर लगे रहने हेतु प्रोत्साहित किया। सभी पाठकवर्ग से अनुरोध है कि यदि आप जिनवाणी के रहस्योदघाटक पूज्य गुरुदेवश्री के आध्यात्मिक प्रवचनों को गहराई से समझना चाहते हैं तो इस जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला का अवश्य अध्ययन करें - जिससे गुरुदेवश्री के प्रवचनों में समागत आधारभूत सिद्धान्तों का ज्ञान हो सके। इसके बिना गुरुदेवश्री के भावों की गम्भीरता समझ पाना असम्भव है। स्थान-स्थान पर शिक्षण शिविरों का आयोजन करनेवाले साधर्मी बन्धुओं से भी अनुरोध है कि अपने शिक्षण शिविर में इस ग्रन्थ को अनिवार्यरूप से सम्मिलित करके सम्यक् जिनसिद्धान्तों का शिक्षणार्थियों को परिचय प्रदान करने का अवसर उत्पन्न करायें। देवेन्द्रकुमार जैन बिजौलियां, जिला भीलवाडा (राज.)