SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण दूसरा प्रमेयत्व = प्र + मेय + त्व। प्र = प्रकृष्ट रूप से; विशेषतः। मेय = माप में आने योग्य (मा धातु का विध्यर्थ कृदन्त) त्व = पना (भाववाचक प्रत्यय) प्रमेयत्व = प्रकृष्टरूप में माप में (ज्ञान में-ख्याल में) आने योग्यपना। (5) अगुरुलघुत्व गुण प्रश्न 57 - अगुरुलघुत्व गुण किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस शक्ति के कारण द्रव्य का द्रव्यत्व बना रहे अर्थात् - (1) एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप नहीं हो, (2) एक गुण दूसरे गुणरूप नहीं हो, (3) द्रव्य में विद्यमान अनन्त गुण बिखरकर अलग-अलग न हो जाएं, उस शक्ति को अगरुलघुत्व गुण कहते हैं। प्रश्न 58 - जीवद्रव्य में अगुरुलघुत्व गुण के कारण उसके द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की मर्यादा बतलाओ? उत्तर - (1) अनन्त गुणों के पिण्डरूप जीवद्रव्य का स्व -द्रव्यत्व स्थायी रहता है और वह कभी शरीरादिरूप नहीं होता। (2) जीव का असंख्यात प्रदेशी स्वक्षेत्र कभी पररूप नहीं होता, पर में एकमेक नहीं होता, नहीं मिल जाता और दो जीवों का स्वक्षेत्र भी कभी एक नहीं होता। (3) जीव के एक गुण की पर्याय अन्य गुण की पर्यायरूप
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy