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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
प्रत्येक पदार्थ किसी न किसी ज्ञान का विषय होता है, इसलिए रूपी और अरूपी दोनों पदार्थ अवश्य ही बराबर ज्ञात होते हैं।
प्रश्न 53 आत्मा तो अरूपी है और हमारा ज्ञान अत्यन्त अल्प है, तो आत्मा का ज्ञान कैसे हो सकता है ?
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उत्तर - ऐसा होने पर भी आत्मा का ज्ञान बराबर हो सकता है, क्योंकि आत्मा में भी प्रमेयत्व गुण विद्यमान है और वह सम्यक्मि तथा श्रुतज्ञान का विषय हो सकता है, इसलिए यथार्थ समझ का पुरुषार्थ किया जाए तो आत्मा का ज्ञान अवश्य हो जाता 1
प्रश्न 54 'आत्मा अलख - अगोचर है ' इस कथन का क्या आशय है ?
उत्तर - जड़ इन्द्रियों से, विकल्प / राग से और पराश्रय से आत्मा ज्ञात नहीं होता, इसलिए उसे अलख - अगोचर कहा जाता है, किन्तु आत्मा में ज्ञान गुण तथा प्रमेयत्व गुण होने के कारण स्वसंवेदन ज्ञान से वह अवश्य ज्ञात हो - अनुभव में आये, ऐसा है - यही उसका अर्थ समझना चाहिए।
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प्रश्न 55- ज्ञान करने की और ज्ञात होने की - यह दोनों शक्तियाँ एक साथ किसमें हैं ?
उत्तर - ज्ञान करने की और ज्ञात होने की प्रमेयत्व - ज्ञेय शक्ति दोनों शक्तियाँ (गुण) एक ही साथ जीवद्रव्य में ही हैं।
प्रश्न 56 - ज्ञात होने की शक्ति का नाम और उसका व्युत्पत्ति अर्थ क्या है ?
उत्तर - ज्ञान होने की शक्ति का नाम प्रमेयत्व गुण है; उसका व्युत्पत्ति अर्थ निम्नानुसार है -