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प्रकरण दसवाँ
दर्शन, चारित्र से विरुद्ध भावों के त्याग के लिए सचमुच 'सार' ऐसा वचन कहा है।'
(7) श्री समयसार गाथा 156 की टीका में भी कहा है कि 'परमार्थ मोक्ष हेतु से पृथक् जो व्रत, तपादि शुभकर्मस्वरूप मोक्ष हेतु कुछ लोग मानते हैं उस सम्पूर्ण का निषेध किया गया है, क्योंकि वह (मोक्ष हेतु) अन्य द्रव्य के स्वभाव वाला (अर्थात् पुद्गल स्वभावी) होने से उसके स्वभाव द्वारा ज्ञान का भवन नहीं होता - मात्र परमार्थ मोक्ष हेतु ही एक द्रव्य के स्वभाव वाला (अर्थात् जीवस्वभावी) होने से उसके स्वभाव द्वारा ज्ञान का भवन होता है । '
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(8) 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग : ' (शास्त्र का) वचन होने से, मार्ग तो शुद्ध रत्नत्रय है ।
(9) निज परमात्मा तत्व के रूप शुद्ध रत्नत्रयात्मक मार्ग परम
ऐसा
( श्री नियमसार गाथा 2 की टीका)
सम्यक् श्रद्धान-ज्ञान-अनुष्ठान निरपेक्ष होने से मोक्ष का उपाय है।
( श्री नियमसार गाथा 2 की टीका)
प्रश्न 37 - सम्यग्दर्शन में 'सम्यक्' शब्द क्या बतलाता है ? उत्तर - विपरीत अभिनिवेष (अभिप्राय) के निराकरण के हेतु सम्यक् पद का उपयोग किया है, क्योंकि 'सम्यक्' शब्द प्रशंसा वाचक है; इसलिए श्रद्धान में विपरीत अभिनिवेश का अभाव होते ही प्रशंसा सम्भव होती है ।
[ मोक्षमार्गप्रकाशक (दिल्ली प्रकाशन), पृष्ठ 465 ] प्रश्न 38 - चारित्र में 'सम्यक्' शब्द किसलिए है ?