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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
(3) जीव में जो अज्ञानदशा है, वह सदैव एक-सी नहीं रहती।
(4) पहले अल्प ज्ञान होता है और फिर उसमें वृद्धि होती है, तो वहाँ ज्ञान में परिवर्तन होने का कारण द्रव्यत्व गुण है; और ज्ञान का विकास ज्ञानगुण में से ही होता है, किन्तु शास्त्रादि बाह्य से ज्ञान नहीं आता।
(5) मिट्टी में से घड़ा द्रव्यत्व गुण के कारण हुआ है; कुम्हारादि तो निमित्तमात्र हैं। निश्चय से देखने पर कुम्हार ने घड़ा नहीं बनाया है। मिट्टी की अवस्था कुम्हार ने परिवर्तित की - ऐसा माननेवाले ने द्रव्यत्य गुण को नहीं माना है। पदार्थ के एक गुण को अस्वीकार करने से सम्पूर्ण द्रव्य का स्वीकार होता है
और ऐसा होने से उसने अपने अभिप्राय में सर्व द्रव्यों का अभाव माना है।
प्रश्न 46 - प्रत्येक द्रव्य में अपना कार्य करने का सामर्थ्य किससे है?
उत्तर - प्रत्येक द्रव्य, द्रव्यत्व गुण के कारण नित्य परिणमन शक्तिवाला है, इसलिए निरन्तर अपना-अपना कार्य करता रहता है और उसमें उसका अपना वस्तुत्व गुण निमित्त कारण है।
प्रश्न 47 - द्रव्यत्व गुण और वस्तुत्व गुण के भाव में क्या अन्तर है?
उत्तर - प्रत्येक द्रव्य में निरन्तर - प्रति समय' नयी-नयी अवस्थाएँ होती रहती हैं - ऐसा द्रव्यत्व गुण बतलाता है; और प्रत्येक द्रव्य में प्रयोजनभूत क्रिया उसके अपने से हो रही है, कोई 1. समय = जिसका भाग न हो सके - ऐसा छोटे से छोटा काल।