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प्रकरण दसवाँ
प्रश्न 24 - जीव को धर्म समझने का क्रम क्या है ?
उत्तर - प्रथम तो परीक्षा द्वारा कुदेव, कुगुरु और कुधर्म की मान्यता छोड़कर, अरहन्त देवादि का श्रद्धान करना चाहिए, क्योंकि उनका श्रद्धान करने से गृहीतमिथ्यात्व का अभाव होता है।
(2) फिर जिनमत में कहे हुए जीवादि तत्त्वों का विचार करना चाहिए, उनके नाम लक्षणादि सीखना चाहिए, क्योंकि उस अभ्यास से तत्त्वश्रद्धान की प्राप्ति होती है। __ (3) फिर जिनसे स्व-पर का भिन्नत्व भासित हो, वैसे विचार करते रहना चाहिए, क्योंकि उस अभ्यास से भेदज्ञान होता है।
(4) तत्पश्चात्, एक स्व में स्व-पना मानने के हेतु स्वरूप का विचार करते रहना चाहिए क्योंकि उस अभ्यास से आत्मानभव की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार अनुक्रम से उसे अंगीकार करके फिर उसी में से किसी समय देवादि के विचार में, कभी तत्त्व के विचार में, कभी स्व-पर के विचार में तथा कभी आत्म विचार में उपयोग लगाना चाहिए। इस प्रकार अभ्यास से दर्शनमोह मन्द होता जाता है और जीव वह पुरुषार्थ चालू रखे तो उसी अनुक्रम से उसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो जाती है।
[मोक्षमार्गप्रकाशक (दिल्ली प्रकाशन) पृष्ठ 486-87] प्रश्न 25 - इस क्रम को स्वीकार न करे तो क्या होगा?
उत्तर - जो इस क्रम का उल्लंघन करता है - ऐसे जीव को देवादिक की मान्यता का भी ठिकाना नहीं रहता। वह अपने को ज्ञानी मानता है, लेकिन वे सब चतुराई की बातें हैं, इसलिए जब