________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
पाँच समवाय नहीं माने हैं; वह तो मात्र कर्म की उपशमादि अवस्था को ही मानता है; इसलिए ऐसे विपरीत मान्यतावाले जीव को एकान्त कर्मवादी (दैववादी) गृहीतमिथ्यादृष्टि कहा है।
(गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा 891)
361
प्रश्न 7 - तो फिर मोक्ष के उपाय के लिए क्या करना चाहिए ? उत्तर - जिनेश्वरदेव के उपदेशानुसार पुरुषार्थपूर्वक यथार्थ उपाय करना चाहिए क्योंकि जो जीव पुरुषार्थपूर्वक मोक्ष का उपाय करता है, उसे तो सर्व कारण मिलते हैं और अवश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है । काललब्धि, भवितव्य और उपादेशादिक कारण मिलाना नहीं पड़ते, किन्तु जो जीव पुरुषार्थपूर्वक मोक्ष का उपाय करता है, उसे तो सर्व कारण मिलते हैं और जो उपाय नहीं करता, उसे कोई कारण नहीं मिलते और न धर्म की प्राप्ति होती है - ऐसा निश्चय करना ।
विशेष ऐसा है कि - जीव को काललब्धि, भवितव्य, कर्म के उपशमादि जुटाना नहीं पड़ते, किन्तु जब जीव स्वभावसन्मुख यथार्थ पुरुषार्थ करता है, तब वे कारण स्वयं आ मिलते हैं ।
पुनश्च कर्म के उपशमादिक तो पुद्गल की पर्यायें हैं; उनका कर्ता-हर्ता आत्मा नहीं है, किन्तु जब आत्मा यथार्थ पुरुषार्थ करता है, तब कर्म के उपशमादि स्वयं हो जाते हैं । कर्म के उपशमादिक हैं, वह तो पुद्गल की शक्ति है, उसका कर्ता-हर्ता आत्मा नहीं है।
जीव का कर्तव्य तो तत्त्वनिर्णय का अभ्यास ही है। वह करे, तब दर्शनमोह का उपशम स्वयं होता है, किन्तु कर्म की अवस्था में जीव का कुछ भी कर्तव्य नहीं है।