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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
- सम्यग्दर्शन का उत्पाद सुपात्र जीवों के अपने पुरुषार्थ से होता है।
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शास्त्रों में जहाँ व्यवहारसम्यग्दर्शन को निश्चयसम्यग्दर्शन का कारण कहा है, वहाँ व्यवहारसम्यदर्शन को 'अभावरूप कारण ' कहा है - ऐसा समझना चाहिए। उसके कारण दो प्रकार हैं(1) निश्चय और (2) व्यवहार । निश्चय कारण तो अवस्थारूप होनेवाला द्रव्य स्वयं है और व्यवहार कारण पूर्व पर्याय व्यय होता है - वह है । ' (मोक्षशास्त्र अध्याय 1, परिशिष्ट 1, पृष्ठ 123 ) प्रश्न 63 - निश्चयनय के आश्रय बिना सच्चा व्यवहार हो सकता है ?
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उत्तर - नहीं; ‘...अज्ञानी ऐसा मानते हैं कि व्यवहार के आश्रय से धर्म होता है;' इसलिए उनका व्यवहारनय, वह निश्चयनय ही हो गया; इसलिए अज्ञानियों के सच्चे नय नहीं होते ।
साधक जीवों को ही उनके श्रुतज्ञान में नय होते हैं। निर्विकल्प दशा के अतिरिक्त काल में जब उनको श्रुतज्ञान के भेदरूप उपयोग नयरूप से होते हैं तब, और संसार के कार्यों में हों या स्वाध्याय, व्रत नियमादि कार्यों में हो तब, जो विकल्प उठते हैं, वे सब व्यवहारनय के विषय हैं परन्तु उस समय भी उनके ज्ञान में निश्चनय एक ही आदरणीय होने से (और व्यवहारनय उस समय होने पर भी वह आदरणीय न होने से) उनकी शुद्धता में वृद्धि होती है - इस प्रकार सविकल्पदशा में निश्चयनय आदरणीय है और व्यवहारनय उपयोगरूप होने पर भी, ज्ञान में उसी समय हेयरूप है। - इस प्रकार (निश्चयनय और व्यवहारनय - यह दोनों साधक जीवों को एक ही समय होते हैं । ) ... निश्चयनय के आश्रय बिना सच्चा