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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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राग, द्वेष, अरु मरणयुत, ये अष्टादश दोष; नहिं होते अरिहन्त के सो छवि लायक मोक्ष। प्रश्न 23 - सच्चे शास्त्र (आगम) का क्या स्वरूप है ?
उत्तर - (1) 'जिनमें अनेकान्त सच्चे जीवादि तत्त्वों का निरूपण है तथा जो सच्चा रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग बतलाते हैं, वे सच्चे जैनशास्त्र हैं।'
___(मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृष्ठ 233) (2) 'तीर्थङ्कर परमदेव की वाणी जो पूर्वापर दोषरहित और शुद्ध है, उसे आगम (शास्त्र) कहा है।' (नियमसार, गाथा 8 )
(3) वास्तव में आगम बिना पदार्थों का निश्चय नहीं किया जा सकता क्योंकि आगम ही, जिसे तीनों काल (उत्पादव्ययध्रौव्यरूप) तीन लक्षण वर्तते हैं - ऐसे सकल पदार्थसार्थ के यथातथ ज्ञान द्वारा सुस्थित् अन्तरङ्ग से गम्भीर है।'
( श्री प्रवचनसार गाथा 232 की टीका) प्रश्न 24 - सर्वज्ञ का लक्षण क्या है? उत्तर - श्री समन्तभ्रदाचार्य कहते हैं कि -
हे जिनेन्द्र ! तू वक्ताओं में श्रेष्ठ है; चराचर (जंगम तथा स्थावर) जगत् प्रतिक्षण (प्रत्येक समय) उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य लक्षणवाला - ऐसा यह तेरा वचन सर्वज्ञ का चिह्न है।
(श्री बृहत् स्वयंभूस्तोत्र, श्लोक 114) प्रश्न 25 - जैनधर्म क्या है?
उत्तर - जैनधर्म राग-द्वेष, अज्ञान को जीतनेवाला आत्मस्वभाव है। अज्ञान और अंशतः राग-द्वेष का अभाव होने पर निश्चय सम्यग्दर्शन होने से (चौथे गुणस्थान में) जैनत्व का