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उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता
भव्यजीव जब तक मिथ्यादृष्टि रहता है, तब तक उसके भी सम्यग्दर्शन की विशेष योग्यता नहीं होती । विशेष योग्यता तो उसी समय है, जिस समय जीव, पुरुषार्थ से सम्यग्दर्शन प्रगट करता है । सामान्य योग्यता द्रव्यरूप है और विशेष योग्यता प्रगटरूप है; सामान्य योग्यता कार्य प्रगट होने का उपादानकारण नहीं किन्तु विशेष योग्यता ही उपादानकारण है।
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प्रश्न - 'चारित्रदशा प्रगट होती है, इसलिए वस्त्र नहीं छूट
किन्तु वस्त्र के परमाणुओं की योग्यता से ही वे छूटते हैं' - ऐसा आपने कहा है किन्तु किसी जीव के चारित्रदशा प्रगट होती हो और वस्त्र में छूटने की योग्यता न तो क्या सवस्त्र मुक्ति हो जाएगी ? उत्तर - सवस्त्र मुक्ति होने की तो बात ही नहीं है । चारित्रदशा का स्वरूप ही ऐसा है कि उसे वस्त्र के साथ निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध रहता ही नहीं; इसलिए चारित्रदशा में सहज ही वस्त्र का त्याग होता है तो भी वस्त्र का त्याग उन परमाणुओं की अवस्था की योग्यता है, उसका कर्ता आत्मा नहीं है ।
प्रश्न यदि किसी मुनिराज के शरीर पर कोई व्यक्ति वस्त्र डाल जाए तो उस समय उनके चारित्र का क्या होगा ?
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उत्तर किसी दूसरे जीव के द्वारा वस्त्र डाला जाए यह तो उपसर्ग है; इससे मुनि के चारित्र में कोई बाधा नहीं आती, क्योंकि उस वस्त्र के साथ उनके चारित्र का निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध नहीं है; वस्तुतः वहाँ तो वस्त्र ज्ञान का ज्ञेय है अर्थात् ज्ञेय-ज्ञायकपने का निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है ।
सम्यक् नियतवाद क्या है ?
वस्तु की पर्याय क्रमबद्ध जिस समय जो होनी हो, वही होती