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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
रहता है। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि उपादान के कार्य में निमित्त कुछ करता है। वस्तुतः तो जब उपादान की योग्यता होती है, तब निमित्त अवश्य होता है ।
प्रश्न
उत्तर -
वर्तमान पर्याय ही समर्थ कारण है । पूर्व पर्याय को वर्तमान पर्याय का उपादानकारण कहना व्यवहार है। निश्चय से तो वर्तमान पर्याय स्वयं ही कारण कार्य है और इससे भी आगे बढ़कर कहें तो एक पदार्थ में कारण और कार्य ऐसे दो भेद करना भी व्यवहार है। वास्तव में तो प्रत्येक समय की पर्याय अहेतुक है।
प्रश्न
कैसे ?
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• समर्थ कारण द्रव्य है, गुण है या पर्याय ?
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• मिट्टी को घड़े का उपादानकारण कहा जाता है, यह
उत्तर
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- वास्तव में घड़े का उपादानकारण सभी मिट्टी नहीं है, किन्तु जिस समय घड़ा बनता है, उस समय की अवस्था ही स्वयं उपादानकारण है। मिट्टी को घड़े का उपादानकारण कहने का तु यह है कि घड़ा बनने के लिए मिट्टी में जैसी सामान्य योग्यता है, वैसी योग्यता अन्य पदार्थों में नहीं है। मिट्टी में घड़ा बनने की विशेष योग्यता तो जिस समय घड़ा बनता है, उसी समय है; उससे पूर्व उसमें घड़ा बनने की विशेष योग्यता नहीं है; इसलिए विशेष योग्यता ही सच्चा उपादानकारण है, जो कि कार्य का उत्पादक है । इस विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए उसे जीव में लागू करते हैं.
सम्यग्दर्शन प्रगट होने की सामान्य योग्यता तो प्रत्येक जीव में है, जीव से अतिरिक्त अन्य किसी में वैसी सामान्य योग्यता नहीं है। सम्यग्दर्शन की सामान्य योग्यता (शक्ति) समस्त जीवों में है किन्तु विशेष योग्यता भव्यजीवों में ही होती है; अभव्यजीवों के तथा