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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
भिन्नतारूप इस स्वभाव को न जान ले, तब तक जीव को पर से सच्ची उदासीनता नहीं होती, विकार का स्वामित्व नहीं मिटता और अपनी पर्याय का स्वामी (आधार) जो आत्मस्वभाव है, उसकी दृष्टि नहीं होती। यह स्वतन्त्रता जैनदर्शन का मूल रहस्य है ।
एक परमाणु की स्वतन्त्र शक्ति
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प्रत्येक जीव तथा अजीव द्रव्यों की पर्याय स्वतन्त्रतया अपने से होती है। एक परमाणु भी अपनी ही शक्ति से परिणमित होता है; उसमें निमित्त क्या करता है? एक परमाणु पहले समय में काला होता है और दूसरे समय में सफेद हो जाता है तथा पहले समय में एक अंश काला और दूसरे समय में अनन्त गुना काला हो जाता है, इसमें निमित्त ने क्या किया ? वह तो अपनी योग्यता से परिणमित होता है । इन्द्रियों और ज्ञान का स्वतन्त्र परिणमन
यह बात मिथ्या है कि जड़ इन्द्रियाँ हैं, इसलिए आत्मा को ज्ञान होता है। आत्मा का त्रिकाल सामान्य ज्ञानस्वभाव अपने कारण से प्रतिसमय परिणमित होता है और जिस पर्याय में जैसी योग्यता होती है, उतना ही ज्ञान का विकास होता है । पञ्चेन्द्रिय सम्बन्धी ज्ञान का विकास है, इसलिए पाँच बाह्य इन्द्रियाँ हैं- ऐसी बात नहीं है, और पाँच इन्द्रियाँ हैं, इसलिए ज्ञान का विकास है - ऐसा भी नहीं है। ज्ञान की पर्याय में जितनी योग्यता थी, उतना विकास हुआ है और जिन परमाणुओं में इन्द्रियरूप होने की योग्यता थी, वे स्वयं इन्द्रियरूप में परिणमित हुए हैं; तथापि दोनों का निमित्त - नैमित्तिक मेल है। जिस जीव के एक ही इन्द्रिय-सम्बन्धी ज्ञान का विकास होता है, उसके एक ही इन्द्रिय होती है; दोवाले के दो; तीनवाले के तीन; चारवाले के चार और पञ्चेन्द्रिय सम्बन्धी विकासवाले के पाँचों ही इन्द्रियाँ