SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता योग्यता है। जैसे उपादान में प्रति समय स्वतन्त्र योग्यता है, उसी प्रकार निमित्तरूप कर्म के प्रत्येक परमाणुओं में भी समय समय की स्वतन्त्र योग्यता है । 260 प्रश्न - क्या यह सच नहीं है कि जीव ने राग-द्वेष किये, इसलिए परमाणुओं में कर्मरूप अवस्था हुई ? उत्तर — - यह कथन निमित्त का है। अमुक परमाणु ही कर्मरूप हुए और जगत् के दूसरे अनन्त परमाणु कर्मरूप क्यों नहीं हुए? इसलिए जिन-जिन परमाणुओं में योग्यता थी, वही परमाणु कर्मरूप परिणत हुए हैं। वे अपनी योग्यता से ही कर्मरूप हुए हैं, जीव के राग-द्वेष के कारण नहीं । - प्रश्न - जब परमाणुओं में कर्मरूप होने की योग्यता होती है, तब आत्मा को राग-द्वेष करना ही चाहिए क्योंकि परमाणुओं में कर्मरूप होने का उपादान है, इसलिए वहाँ जीव के विकाररूप निमित्त होना ही चाहिए; क्या यह बात ठीक है ? उत्तर - - यह दृष्टि अज्ञानी की है। भाई ! तुझे अपने स्वभाव में देखने का काम है या परमाणु में देखने का ? जिसकी दृष्टि स्वतन्त्र हो गयी है, वह आत्मा की ओर देखता है और जिसकी दृष्टि निमित्ताधीन है, वह परमुखापेक्षी रहता है। जिसने यह यथार्थ निर्णय किया है कि ‘जब जिस वस्तु की जो अवस्था होनी हो, वही होती है;' उसके द्रव्यदृष्टि होती है, स्वभावदृष्टि होती है; उसकी स्वभावदृष्टि में तीव्र रागादि तो होते ही नहीं और उस जीव के निमित्त से तीव्रकर्मरूप परिणमित होने की योग्यतावाले परमाणु ही इस जगत में नहीं होते । जब जीव ने अपने स्वभाव के पुरुषार्थ से सम्यग्दर्शन प्रगट किया वहाँ उस जीव के लिए मिथ्यात्वादि कर्मरूप से परिणमित
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy