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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 249 शरीर का गमन और जीव की इच्छा - दोनों की स्वतन्त्रता जीव, इच्छा करता है, इसलिए शरीर चलता है - यह बात नहीं है और शरीर चलता है. इसलिए जीव को इच्छा होती है - ऐसा भी नहीं है। जब शरीर के परमाणुओं में क्रियावतीशक्ति की योग्यता से गति होती है, तब किसी जीव के अपनी अवस्था की योग्यता से इच्छा होती है और किसी के नहीं भी होती है। केवली के शरीर की गति होने पर भी इच्छा नहीं होती। अत: दोनों स्वतन्त्र हैं। विकल्प और ध्यान - दोनों की स्वतन्त्रता चैतन्य के ध्यान का विकल्प उठता है, वह राग है। उस विकल्परूपी निमित्त के कारण ध्यान जमता हो - ऐसी बात नहीं है, किन्तु जहाँ ध्यान जमता हो, वहाँ पहले विकल्प होता है। विकल्प के कारण ध्यान नहीं होता और ध्यान के कारण विकल्प नहीं होता। जिस पर्याय में विकल्प था, वह उस पर्याय की स्वतन्त्र योग्यता से था और जिस पर्याय में ध्यान जमा है, वह उस पर्याय की स्वतन्त्र योग्यता से जमा है। सम्यक्नियतिवाद अर्थात् सर्वज्ञवाद और उसका फल प्रश्न – यह तो नियतिवाद हो गया? उत्तर – यह सम्यनियतिवाद है, मिथ्यानियतिवाद नहीं है। सम्यनियतिवाद का क्या अर्थ है ? यही कि जिस पदार्थ में, जिस समय, जिस क्षेत्र में, जिस निमित्त से, जैसा होना है, वैसा होता ही है, उसमें किञ्चित्मात्र भी परिवर्तन करने के लिए कोई समर्थ नहीं है - ऐसा ज्ञान में निर्णय करना, सम्यनियतिवाद है और उस निर्णय में ज्ञानस्वभाव की ओर का अनन्त पुरुषार्थ आ जाता है। जिस ज्ञान ने यह निर्णय किया कि सभी नियति है. उस ज्ञान में
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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