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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
है और वही सर्वज्ञ भगवान के सर्व उपदेश का तात्पर्य है ।
(वी०सं० 2481 आसोज मास का आत्मधर्म अङ्क पत्र 301-2 से उद्धृत ) प्रश्न 63 - दूसरे प्रकार से द्रव्य का लक्षण क्या है ?
उत्तर
1. गुणपर्ययवत् द्रव्यम्
अर्थात् द्रव्य, गुण-पर्यायावाला है [ मोक्षशास्त्र, अध्याय 5, सूत्र 38 ] 2. गुणपर्ययसमुदायो द्रव्यम्
अर्थात् गुणों तथा पर्यायों का समुदाय, वह द्रव्य है।
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[ पञ्चाध्यायी भाग 1, गाथा 72 ]
3. गुणसमुदायो द्रव्यम् अर्थात् गुणों का समुदाय, वह द्रव्य है ।
[ पञ्चाध्यायी भाग 1, गाथा 73 ]
4. समगुणपर्यायो द्रव्यम्
अर्थात् समगुण-पर्यायों को ( युगपत सम्पूर्ण गुण -पर्यायों को ही) द्रव्य कहते हैं ।
[ पञ्चाध्यायी भाग 1, गाथा 73 ]
स्पष्टार्थ - देश', देशांश, गुण और गुणांशरूप स्वचतुष्टय को ही एक साथ एक शब्द द्वारा द्रव्य कहते हैं। भेद-विवक्षा से द्रव्य का स्वरूप समझाने के लिए स्वचतुष्टय का निरूपण किया है; उसी को अभेद-विवक्षा से एक शब्द में 'द्रव्य' कहा जाता है । यही 'समगुणपर्याय' शब्द का स्पष्टीकरण है।
[ पञ्चाध्यायी भाग 1, गाथा 74 ]
5. 'द्रव्यत्वयोपाद् द्रव्यम्'
अर्थात् द्रव्यत्व के सम्बन्ध से द्रव्य है । यह भी प्रमाण है।
1. देश- द्रव्य; देशांश- क्षेत्र; गुण-भाव; गुणांश-पर्याय-काल