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परिशिष्ट : स्वतन्त्रता की घोषणा
देखो, इसमें निमित्त के बिना नहीं होता ऐसा नहीं कहा। निमित्त, निमित्त में रहता है, वह कहीं इस कार्य में नहीं आ जाता ; इसलिए निमित्त के बिना कार्य होता है परन्तु परिणामी के बिना कार्य नहीं होता । निमित्त भले हो परन्तु उसका अस्तित्व तो निमित्त में है; इसमें (कार्य में) उसका अस्तित्व नहीं है । परिणामी वस्तु की सत्ता में ही उसका कार्य होता है ।
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आत्मा के बिना सम्यक्त्वादि परिणाम नहीं होते । अपने समस्त परिणामों का कर्ता आत्मा है, उसके बिना कर्म नहीं होता । 'कर्म कृतं शून्यं न भवति' - प्रत्येक पदार्थ की अवस्था उस-उस पदार्थ के बिना नहीं होती। सोना नहीं है और गहने बन गये; वस्तु नहीं है और अवस्था हो गयी ऐसा नहीं हो सकता । अवस्था है, वह त्रैकालिक वस्तु को प्रगट करती है - प्रसिद्ध करती है कि यह अवस्था इस वस्तु की है ।
जैसे कि पुद्गल, जड़कर्मरूप होते हैं, वे कर्मपरिणाम, कर्ता के बिना नहीं होते। अब उनका कर्ता कौन ? - तो कहते हैं कि उस पुद्गलकर्मरूप परिणमित होनेवाले रजकण ही कर्ता हैं; आत्मा उनका कर्ता नहीं है।
- आत्मा, कर्ता होकर जड़कर्म का बन्ध करे ऐसा वस्तुस्वरूप में नहीं है।
जड़कर्म, आत्मा को विकार करायें ऐसा वस्तुस्वरूप में
नहीं है।
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मन्दकषाय के परिणाम, सम्यक्त्व का आधार हों - ऐसा वस्तुस्वरूप में नहीं है ।
- शुभराग से क्षायिकसम्यक्त्व हो - ऐसा वस्तुस्वरूप में नहीं है।