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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला I इत्यादि जो उसके वर्तमानभाव हैं, वे उसके परिणाम हैं। परिणाम, परिणामी के ही हैं; अन्य के नहीं इसमें जगत् के सभी पदार्थों का नियम आ जाता है । परिणाम, परिणामी के ही आश्रित होते हैं । ज्ञानपरिणाम, आत्मा के आश्रित हैं, भाषा आदि के आश्रित नहीं हैं; इसलिए इसमें पर की ओर देखना नहीं रहता, परन्तु अपनी-अपनी वस्तु के सामने देखकर स्वसन्मुख परिणमन करना रहता है, उसमें मोक्षमार्ग आ जाता है। 211 वाणी तो अनन्त जड़ परमाणुओं की अवस्था है, वह अपने जड़ परमाणुओं के आश्रित है। बोलने की जो इच्छा हुई, उस इच्छा के आश्रित भाषा के परिणाम तीन काल में भी नहीं हैं। जब इच्छा हुई और भाषा निकली, उस समय उसका जो ज्ञान हुआ, वह ज्ञान, आत्मा के आश्रय से ही हुआ है; भाषा के आश्रय से तथा इच्छा के आश्रय से ज्ञान नहीं हुआ है। परिणाम अपने आश्रयभूत परिणामी के आश्रय से ही होते हैं; अन्य के आश्रय से नहीं होते। इस प्रकार यहाँ अस्ति नास्ति से अनेकान्त द्वारा वस्तुस्वरूप समझाया है। यह बात सत्य के सिद्धान्त की; अर्थात्, वस्तु के सत्स्वरूप की है। अज्ञानी इस बात को पहिचाने बिना मूढ़तापूर्वक अज्ञानता में ही जीवन पूर्ण कर डालता है। भाई ! आत्मा क्या है और जड़ क्या है ? इनकी भिन्नता समझकर वस्तुस्वरूप के वास्तविक सत् को समझे बिना ज्ञान में सत्पना नहीं आता; अर्थात्, सम्यग्ज्ञान नहीं होता; वस्तुस्वरूप के सत्यज्ञान के बिना सच्ची रुचि और श्रद्धा भी नहीं होती और सच्ची श्रद्धा के बिना वस्तु में स्थिरतारूप चारित्र प्रगट नहीं होता, शान्ति नहीं होती, समाधान और सुख नहीं होता; इसलिए वस्तु क्या है ? उसे -
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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