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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 183 भी न हो तो वहाँ मोक्षमार्ग हो ही नहीं सकता... (2) जिसे ऊपर कहे अनुसार भेदज्ञान है, वही उसके (भेदविज्ञान के) सद्भाव से ज्ञानी होता हुआ इस प्रकार जानता है कि जिस प्रकार प्रचण्ड अग्नि द्वारा तप्त होने पर भी सुवर्ण सुवर्णत्व को नहीं छोड़ता; उसी प्रकार प्रचण्ड कर्मोदय द्वारा घिरा होने पर भी, (अर्थात् विघ्न किये जाने पर भी ) ज्ञान ज्ञानत्व को नहीं छोड़ता क्योंकि हजारों कारण एकत्रित होने पर भी स्वभाव को छोड़ना अशक्य है, क्योंकि उसे छोड़ने से स्वभावमात्र वस्तु का ही उच्छेद हो जाएगा और वस्तु का उच्छेद तो होता नहीं है, क्योंकि सत् के नाश का असम्भव है। ऐसा जानता हुआ ज्ञानी, कर्म से आक्रान्त ( घिरा हुआ, आक्रमित हुआ ) होने पर भी रागी नहीं होता, द्वेषी नहीं होता, मोही नहीं होता, परन्तु शुद्ध आत्मा का ही अनुभवन करता है... (समयसार, गाथा 184-185 की टीका) [यहाँ बाह्य हजार कारणों को तथा प्रचण्ड कर्मोदय को असमर्थ कारण कहा है।] (3) अब, कारण तो अनेक प्रकार के होते हैं। कोई कारण तो ऐसे होते हैं कि जिनके हुए बिना कार्य न हो और जिनके होने से कार्य हो अथवा न भी हो; जैसे कि मुनिलिङ्ग धारण किये बिना तो मोक्ष नहीं होता, परन्तु मुनिलिङ्ग धारण करने से मोक्ष हो अथवा न भी हो... (मोक्षमार्गप्रकशक, पृष्ठ 462, दिल्ली प्रकाशन) • भावलिङ्गरहित बाह्य मुनिलिङ्ग, अर्थात् अट्ठाईस मूलगुण का पालन, नग्न दिगम्बरदशा को यहाँ असमर्थकारण कहा है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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