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प्रकरण छठवाँ
योग्यता हो, वहाँ निमित्तकारण होते ही हैं और उन दोनों को समग्ररूप से समर्थकारण कहते हैं।] 2. बनारसीविलास - उपादान-निमित्त-दोहा में कहा है कि - "उपादान निज गुण जहाँ, तहँ निमित्त पर होय;
भेदज्ञान प्रमाण विधि, विरला बूझे कोय"
अर्थात् जहाँ, निज शक्तिरूप उपादान तैयार हो, वहाँ परनिमित्त होता ही है; ऐसी भेदज्ञान प्रमाण की विधि (व्यवस्था है); यह सिद्धान्त कोई विरले ही समझते हैं।
[यहाँ उपादान-निमित्त दोनों को ही समग्ररूप से समर्थकारण कहा है।]
3. ...कोई कारण ऐसे हैं कि जिनके होने से कार्य अवश्य सिद्ध होगा ही तथा जिनके न होने से कार्य सर्वथा सिद्ध नहीं होगा; जैसे कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता होने से तो मोक्ष होता है और वैसा हुए बिना सर्वथा मोक्ष नहीं होता।
(देहली से प्रकाशित मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 462) __[यहाँ क्षणिक उपादान को समर्थकारण कहा है, किन्तु वहाँ उचित कर्म का अभाव निमित्त कारण होता है - ऐसा समझना।]
प्रश्न 41 - असमर्थकारण किसे कहते है ?
उत्तर - भिन्न-भिन्न प्रत्येक सामग्री को असमर्थकारण कहते हैं। असमर्थकारण, कार्य का नियामक नहीं है।
(जैन सिद्धान्त प्रवेशिका) उसके दृष्टान्त इस प्रकार हैं - (1)...सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र में से एक