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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 169 करना पड़े, अथवा निमित्त मिलाना पड़े, अथवा निमित्त है, इसलिए उपादान में कार्य होता है। (4) प्रति समय उपादान में निश्चित् कार्य होता है और उस काल में निमित्त भी निश्चित् होता ही है। (5) प्रत्येक द्रव्य अनादि से अनन्त काल प्रति समय परिणमन करता ही है; वह परिणाम स्वयं कार्य है और प्रत्येक समय के कार्य के लिए उपादान और निमित्तकारण, अर्थात् उपादानरूप उत्पादक सामग्री और निमित्तरूप उत्पादक सामग्री होती ही है। किसी समय वह न हो - ऐसा होता ही नहीं। (देखो प्रकरण पाँचवाँ, प्रश्न 363) प्रश्न 30 - पुद्गलकर्म की बलजबरी से जीव में राग-द्वेष के परिणाम होते हैं - यह ठीक है? उत्तर - (1) नहीं; श्री ‘समयसार नाटक' में ऐसा प्रश्न करके उसका निम्नानुसार समाधान किया है - कोऊ मूरख यों कहे, राग दोष परिनाम; पुग्गल की जोरावरी, वरतै आतमराम। ज्यों ज्यों पुग्गल बल करै, धरि धरि कर्मज भेष; रागदोष कौ परिनमन, त्यों-त्यों होय विशेष। अर्थात् कोई-कोई मूर्ख ऐसा कहते हैं कि आत्मा में राग-द्वेष के भाव, पुद्गल की बलजबरी से होते हैं। वे कहते हैं कि - पुद्गल, कर्मरूप परिणमन के उदय में जैसा-जैसा बल करता है, वैसी-वैसी बाहुल्यता से राग-द्वेष के परिणाम होते हैं। इहि विधि जो विपरीत पख, गहै सद्दहै कोई सो नर राग विरोध सौं, कबहूँ भिन्न न होई।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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