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महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
गुणस्थान-प्रवेशिका ४०. प्रश्न : उदयावली किसे कहते हैं ?
उत्तर : वर्तमान समय से लेकर एक आवली पर्यंत काल में उदय आनेयोग्य निषेकों को उदयावली कहते हैं।
४१. प्रश्न : निषेक किसे कहते हैं ?
उत्तर : एक समय में उदय आनेवाले कर्मपरमाणुओं के समूह को निषेक कहते हैं।
४२. प्रश्न : क्षय किसे कहते हैं ? । उत्तर : कर्मों का आत्मा से सर्वथा दूर होने को क्षय कहते हैं।
• कर्मों का कर्मरूप से नाश होने को अर्थात् अकर्मरूप दशा होने को क्षय कहते हैं।
४३. प्रश्न : श्रेणी किसे कहते हैं ?
उत्तर : चारित्रमोहनीय की अनंतानुबंधी चतुष्क बिना शेष २१ प्रकृतियों के उपशम वा क्षय में निमित्त होनेवाले जीव के शुद्ध भावों अर्थात् वृद्धिंगत वीतराग परिणामों को श्रेणी कहते हैं।
४४. प्रश्न : श्रेणी के कितने भेद हैं ? उत्तर : उपशमश्रेणी व क्षपकश्रेणी, इसप्रकार दो भेद हैं। ४५. प्रश्न : श्रेणी चढ़ने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : सातवें गुणस्थान से आगे मुनिराज क्रम से शुद्ध भावों को अर्थात् वीतरागता को बढ़ाते ही जाते हैं; इसी को श्रेणी चढ़ना कहते हैं।
. सातवें गुणस्थान से आगे वृद्धिंगत वीतराग परिणामों की दो श्रेणियाँ हैं ह्र १. उपशमश्रेणी व २. क्षपकश्रेणी है। प्रत्येक श्रेणी के चार-चार गुणस्थान होते हैं।
४६. प्रश्न : उपशमश्रेणी किसे कहते हैं ? उसके कौन-कौन से गुणस्थान हैं?
उत्तर : जिसमें चारित्र मोहनीय की २१ प्रकृतियों के उपशम के साथ वीतरागता बढ़ती जाती है, उसे उपशमश्रेणी कहते हैं। आठवाँ,
नौवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ ये चार गुणस्थान उपशमश्रेणी के हैं।
४७. प्रश्न : क्षपकश्रेणी किसे कहते हैं ? उसके कौन-कौन से गुणस्थान हैं ?
उत्तर : जिसमें चारित्रमोहनीय की २१ प्रकृतियों के क्षय के साथ वीतरागता बढ़ती जाती है, उसे क्षपकश्रेणी कहते हैं। आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ और बारहवाँ ये चार गुणस्थान क्षपकश्रेणी के हैं।
४८. प्रश्न : श्रेणी चढ़ने का पात्र कौन होता है ?
उत्तर : सातिशय अप्रमत्तविरत नामक सप्तम गुणस्थानवर्ती मुनिराज श्रेणी चढ़ने के पात्र होते हैं।
.क्षायिक सम्यग्दृष्टि अप्रमत्त मुनिराज, उपशम अथवा क्षपकश्रेणी चढ़ सकते हैं; परन्तु द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि मात्र उपशम श्रेणी चढ़ सकते हैं।
४९. प्रश्न : मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उसके कितने और कौनकौन से भेद हैं ? ___उत्तर : जीव के मोह-राग-द्वेष आदि विकारी परिणामों के होने में जो कर्म, निमित्त होता है; उसे मोहनीय कर्म कहते हैं। उसके दो भेद हैं ह्र दर्शनमोहनीय कर्म और चारित्रमोहनीय कर्म।।
५०. प्रश्न : दर्शनमोहनीय कर्म के कितने और कौन-कौन से भेद हैं?
उत्तर : बंध की अपेक्षा दर्शनमोहनीय कर्म एक ही प्रकार का है; किन्तु सत्त्व अर्थात् सत्ता और उदय की अपेक्षा से उसके तीन भेद हैं ह्र (१) मिथ्यात्व (२) सम्यग्मिथ्यात्व (३) सम्यक्प्रकृति ।
जैसे ह्र चक्की में दले हुये कोदों के चावल, कण और भूसी, इसप्रकार तीन भेद होते हैं; उसीप्रकार प्रथमोपशम सम्यक्त्वरूपी चक्की में दले गये दर्शनमोहनीय कर्म के तीन भेद होते हैं।
५१. प्रश्न : मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : सर्वज्ञ प्रणीत मार्ग से विमुख होकर तत्त्वार्थश्रद्धान में निरुत्सुक, हिताहित विचार करने में असमर्थ, मिथ्यात्व अर्थात् विपरीत मान्यतारूप