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गुणस्थान- प्रवेशिका
३४. प्रश्न : उपशांत किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो कर्म उदय में नहीं आ सके, सत्ता में रहे, वह उपशांत कहलाता है।
• सत्ताविषै तिष्ठता अपनी-अपनी स्थिति को धरै हैं ज्ञानावरणादिक कर्म का द्रव्य जा विषै, जाकी जावत् काल उदीरणा न होय तावत् काल उपशांत करण कहिए ।
• उपशांत करण आठों कर्मों में होता है।
उपशांत अवस्था को प्राप्त कर्म का उत्कर्षण, अपकर्षण और संक्रमण हो सकता है; किन्तु उसकी उदीरणा नहीं होती ।
कर्मों की दस अवस्थाओं में उपशांतकरण है।
३५. प्रश्न : उपशम किसे कहते हैं ?
उत्तर : आत्मा में कर्म की निजशक्ति का कारणवश प्रगट न होना, उपशम है। जैसे ह्र कतक आदि द्रव्य के संबंध से जल में कीचड़ का उपशम हो जाता है।
• परिणामों की विशुद्धता से कर्मों की शक्ति का अनुद्भूत रहना अर्थात् प्रगट न होना उपशम है।
• उपशम मात्र दर्शनमोहनीय एवं चारित्रमोहनीय में होता है, अन्य किसी भी कर्मों में नहीं ।
• कर्मों की दस अवस्थाओं में उपशम करण नहीं है।
• प्रशस्त अप्रशस्त भेद उपशांत के नहीं है।
३६. प्रश्न : प्रशस्त उपशम किसे कहते हैं ?
उत्तर : (अ) अधःकरणादि द्वारा उपशम विधान से ( अनंतानुबंधी चतुष्क बिना) मोहनीय कर्म की जो उपशमना होती है, उसे प्रशस्त उपशम कहते हैं। इसे अंतरकरणरूप उपशम भी कहते हैं।
(ब) आगामी काल में उदय आनेयोग्य कर्म परमाणुओं को जीवकृत परिणाम विशेष के द्वारा आगे-पीछे उदय में आनेयोग्य होने को अंतर
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
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करणरूप उपशम कहते हैं। औपशमिक सम्यक्त्व में दर्शनमोहनीय का प्रशस्त उपशम ही होता है।
(क) उदय, उदीरणा, उत्कर्षण, अपकर्षण, परप्रकृतिसंक्रमण, स्थितिकाण्डकघात, अनुभागकाण्डकघात के बिना कर्मों के सत्ता में रहने को प्रशस्त उपशम कहते हैं।
३७. प्रश्न: अप्रशस्त उपशम किसे कहते हैं ?
उत्तर : अप्रशस्त उपशम का दूसरा नाम सदवस्थारूप उपशम भी है। • वर्तमान समय छोड़कर आगामी काल में उदय आनेवाले कर्मों का
सत्ता में पड़े रहने को सदवस्थारूप उपशम या अप्रशस्त उपशम कहते हैं। • उदय का अभाव ही अप्रशस्त उपशम है ।
•
अनंतानुबंधी का अप्रशस्त उपशम ही होता है। जैसे ह्र सर्वघाती प्रकृतियों का क्षयोपशम दशा में होनेवाला सदवस्थारूप उपशम । • जो कर्म तीन करणों के बिना ही सत्ता में स्वयं दबा हुआ रहे, उसे अप्रशस्त उपशम कहते हैं।
• सम्यग्दर्शन के समय जो तीन करण होते हैं, वे दर्शनमोहनीय कर्म के उपशम के लिए होते हैं, अनंतानुबंधी कषाय को दबाने के लिए नहीं; परन्तु अनन्तानुबन्धी का सदवस्थारूप / अप्रशस्त उपशम अपने आप होता है। ३८. प्रश्न : निधत्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर : संक्रमण और उदीरणा के अयोग्य प्रकृतियों को निधत्ति कहते हैं। ३९. प्रश्न : निकाचित किसे कहते हैं ?
उत्तर : संक्रमण, उदीरणा, उत्कर्षण और अपकर्षण के अयोग्य प्रकृतियों को निकाचित कहते हैं।
ये तीनों (उपशांत द्रव्यकर्म, निधत्ति एवं निकाचित कर्म ) प्रकार के करण द्रव्य अपूर्वकरणगुणस्थान पर्यंत ही पाये जाते हैं; क्योंकि अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में प्रवेश करने के प्रथम समय में ही सभी कर्मों तीनों करण युगपत् व्युच्छिन्न अर्थात् नष्ट हो जाते हैं। (कर्मकाण्ड गाथा : ४५० एवं जयधवला पुस्तक १३, पृष्ठ २३१, ६७६ )