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गुणस्थान- प्रवेशिका
उत्तर : जीव के ज्ञानादि गुणों के अर्थात् पर्यायों के पूर्णत: घात में निमित्त होनेवाले कर्म को सर्वघाति कर्म कहते हैं।
१४. प्रश्न: सर्वघाति प्रकृतियाँ कौन-कौनसी और कितनी हैं ?
उत्तर : १. केवलज्ञानावरण, २. केवलदर्शनावरण, ३. निद्रा, ४. निद्रा-निद्रा, ५. प्रचला, ६. प्रचलाप्रचला, ७. स्त्यानगृद्धि, ८-११. अनंतानुबंधी चतुष्क, १२-१५. अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क, १६-१९. प्रत्याख्यानावरण चतुष्क, २०. मिथ्यात्वदर्शनमोहनीय, २१. सम्यग्मिथ्यात्वदर्शनमोहनीय ह्न ये २१ प्रकृतियाँ सर्वघाति हैं।
१५. प्रश्न : देशघाति कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जीव के ज्ञानादि गुणों के एकदेश अर्थात् अंशतः घात में निमित्त होनेवाले कर्म को देशघाति कर्म कहते हैं।
१६. प्रश्न : देशघाति प्रकृतियाँ कौन-कौनसी और कितनी हैं ? उत्तर : १. मतिज्ञानावरण, २. श्रुतज्ञानावरण, ३. अवधिज्ञानावरण, ४. मन:पर्यय-ज्ञानावरण, ५. चक्षुदर्शनावरण, ६. अचक्षुदर्शनावरण, ७. अवधि-दर्शनावरण, ८. सम्यक्त्व - प्रकृति, ९ - १२. संज्वलन चतुष्क, १३-२१. हास्यादि नौ नोकषाय, २२. दानान्तराय, २३. लाभान्तराय, २४. भोगान्तराय, २५. उपभोगान्तराय और २६. वीर्यान्तराय ह्न ये २६ प्रकृतियाँ देशघाति हैं ।
१७. प्रश्न : अघातिकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो कर्म, जीव के ज्ञान आदि अनुजीवी गुणों को नहीं घातते, उसे अघातिकर्म कहते हैं।
१८. प्रश्न : मोह किसे कहते हैं ?
उत्तर : परद्रव्यों में जीव को अहंकार-ममकाररूप परिणाम का होना, वह मोह है।
द्रव्य, गुण, पर्याय संबंधी मूढ़तारूप परिणाम, वह मोह है।
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
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देव, गुरु, धर्म, आप्त, आगम और पदार्थों के संबंध में अज्ञानभाव, वह मोह है।
विपरीत मान्यता, तत्त्वों का अश्रद्धान, विपरीत अभिप्राय, परपदार्थों में एकत्व - ममत्व-कर्तृत्व-भोक्तृत्व एवं सुखबुद्धि अर्थात् शरीर को अपना स्वरूप मानना, पंचेन्द्रिय-विषयों में सुख मानना, अनुकूल-प्रतिकूल संयोगों में इष्ट-अनिष्ट बुद्धि रखना, स्वयं को पर का अथवा पर को अपना कर्ता-धर्ता हर्ता मानना इत्यादि मिथ्यात्वभाव दर्शनमोहनीय कर्म के उदय के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले जीव के श्रद्धा गुण के विकारी परिणामों को मोह कहते हैं।
१९. प्रश्न: राग किसे कहते हैं ?
उत्तर : किसी पदार्थ को इष्ट जानकर उसमें जीव के प्रीतिरूप परिणाम का होना, वह राग है।
माया, लोभ, हास्य, रति, तीन वेदरूप परिणाम और परपदार्थों के प्रति आकर्षण, स्नेह, प्रेम, ममत्वबुद्धि, भोक्तृत्वबुद्धि, आसक्ति इत्यादि चारित्रमोहनीय कर्मोदय के समय मेंअर्थात् निमित्त से होनेवाले जीव के चारित्र गुण के कषायरूप परिणमन अर्थात् परिणामों को राग कहते हैं। २०. प्रश्न: द्वेष किसे कहते हैं ?
उत्तर : किसी पदार्थ को अनिष्ट जानकर उसमें जीव के अप्रीतिरूप परिणाम का होना, वह द्वेष है।
क्रोध, मान, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और परपदार्थों के प्रति घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, जलन, द्रोह, असूया इत्यादि चारित्रमोहनीय कर्मोदय के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले जीव के चारित्र गुण के कषायरूप परिणमन अर्थात् परिणामों को द्वेष कहते हैं ।
२१. प्रश्न: कर्मों की कितनी अवस्थाएँ होती हैं ?
उत्तर : कर्मों की दस अवस्थाएँ होती हैं ह्र १) बंध २ ) सत्ता ३ ) उदय ४) उदीरणा ५) उत्कर्षण ६) अपकर्षण ७) संक्रमण ८) उपशांत (९) निधत्ति १० ) निकाचित ।