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अध्याय दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
१. प्रश्न : कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जीव के मोह-राग-द्वेषरूप परिणामों के निमित्त से स्वयं परिणमित कार्याणवर्गणारूप पुद्गल की विशिष्ट अवस्था को कर्म कहते हैं। २. प्रश्न: कार्माणवर्गणा किसे कहते हैं ?
उत्तर : कर्मरूप परिणमित होने योग्य वर्गणाओं को कार्माण वर्गणा कहते हैं ।
३. प्रश्न: कर्म के मूल भेद कितने हैं ?
उत्तर : कर्म के मूल भेद आठ हैं ह्र ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अंतराय । इनमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय ये चार घातिकर्म हैं तथा वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र ये चार अघातिकर्म हैं।
४. प्रश्न: ज्ञानावरण कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो कर्म, आत्मा के ज्ञानगुण को घातता है; उसे ज्ञानावरण कर्म कहते हैं। इसके भेद ५ हैं ।
५. प्रश्न: दर्शनावरणकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो कर्म, आत्मा के दर्शनगुण को घातता है; उसे दर्शनावरणकर्म कहते हैं। इसके नौ भेद हैं ह्न चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलीदर्शनावरण, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिकर्म ।
६. प्रश्न : वेदनीयकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जिस कर्म के फल में जीव को बाह्य सुख - दुःख की वेदना होती है अर्थात् जो कर्म निमित्तरूप से आत्मा के अव्याबाधगुण को
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
घातता है, उसे वेदनीयकर्म कहते हैं। इसके दो भेद हैं ह्र सातावेदनीय और असातावेदनीयकर्म ।
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७. प्रश्न : मोहनीयकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो कर्म, आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्रगुण को घातता है; उसे मोहनीयकर्म कहते हैं। इसके २८ भेद हैं।
८. प्रश्न : आयुकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो कर्म, आत्मा को नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव के शरीर में रोककर रखता है; उसे आयुकर्म कहते हैं अर्थात् आयुकर्म आत्मा के अवगाहनगुण को घातता है। इसके चार भेद हैं ह्र नरकायु, तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु और देवायु ।
९. प्रश्न : नामकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो कर्म, जीव को गति आदि अनेक प्रकार से परिणमाता है अथवा शरीरादिक बनाता है; उसे नामकर्म कहते हैं अर्थात् नामकर्म आत्मा के सूक्ष्मत्वगुण को घातता है। इसके ९३ भेद हैं।
१०. प्रश्न: गोत्रकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जिस कर्म के उदय से उच्च, नीच गोत्र या कुल का व्यवहार होता है; उसे गोत्रकर्म कहते हैं। इसके २ भेद हैं।
११. प्रश्न: अन्तरायकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जिस कर्म, के उदय से दान आदि में विघ्न होता है; उसे अन्तरायकर्म कहते हैं। इसके ५ भेद हैं।
१२. प्रश्न : घातिकर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : जीव के ज्ञानादि अनुजीवी गुणों के घात में अर्थात् ज्ञानादि गुणों की पर्यायों के व्यक्त न होने में निमित्त होनेवाले कर्म को घातिकर्म कहते हैं।
• यहाँ घाति कर्मों का परिणमन दो प्रकार से है ह्र सर्वघाति व देशघाति । १३. प्रश्न: सर्वघाति कर्म किसे कहते हैं ?