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भगवान महावीर और उनकी अहिंसा
(मंगलाचरण) जो राग-द्वेष विकार वजित लीन प्रातम ध्यान में। जिनके विराट विशाल निर्मल अचल केवलज्ञान में ।। युगपद् विशद् सफलार्थ झलकें ध्वनित हों व्याख्यान में। वे वर्द्धमान महान जिन विचरें हमारे ध्यान में ।
इस मंगलाचरण में भगवान महावीर - वर्द्धमान से ध्यान में विचरण करने की प्रार्थना की गई है ।
क्यों?
क्योंकि जैन मान्यतानुसार जो जीव एक बार सिद्ध दशा को प्राप्त हो जाता है, वह लौटकर दुबारा संसार में नहीं आता; अत: कवि ऐसी प्रार्थना करके कि- 'एक बार तो पाना पड़ेगा, सोते हए भारत को जगाना पड़ेगा' - अपनी प्रार्थना को निष्फल नहीं होने देना चाहता है ।
जो वस्तु चली जाती है, वह लौटकर दुबारा नहीं आती। जैसेहमारा बचपन चला गया, अब वह लौटकर नहीं आ सकता; पर वह हमारे ध्यान में तो आ ही सकता है, ज्ञान में तो आ ही सकता है।
मेरी बात पर विश्वास न हो तो आप आँख बन्दकर एक मिनट को विचार कीजिए कि जब आप छठवीं कक्षा में पढ़ते थे। होली के अवसर पर एक बार आपने गुब्बारे में पानी भरकर मास्टरजी की कुर्सी पर गद्दी के नीचे रख दिया था।
जब मास्टरजी आये और कुर्सी पर बैठे तो गुब्बारा फटा और पानी का एक फ़व्वारा छूटा, साथ ही कक्षा में एक हँसी का फ़व्वारा भी छूट गया था। पता चलने पर आपकी पिटाई भी कम न हुई थी, पर जब आज उस घटना का स्मरण पाता है तो फिर वही बचपना मचल उठता है।