________________
गागर में सागर
१३ जाता है अथवा सरल करने के लिए विस्तृत उदाहरणमाला बीच-बीच में आ जाती है; उसे आवश्यकतानुसार या तो हटा ही दिया जाता है, अन्यथा बहुत कम कर दिया जाता है । साथ ही प्रकाशित प्रवचनों में भाषा भी परिमार्जित हो जाती है एवं विषयवस्तु भी एकदम व्यवस्थित हो जाती है। इसप्रकार सभी दृष्टियों से विचार करने पर प्रकाशित प्रवचन भी अपनी जगह एकदम पठनीय और संग्रहरणीय बन जाते हैं । अतः जिन्होंने प्रस्तुत प्रवचनों को प्रत्यक्ष सुनकर आनन्द लिया है, वे भी विशेष लाभ के लिए इन्हें अवश्य पढ़ें।
ज्ञानसमुच्चयसार पर हुए प्रवचनों के अतिरिक्त अन्त में 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' नामक एक व्याख्यान भी संकलित है। ध्यान रहे जब सागर में ज्ञानसमुच्यसार पर प्रवचन हुए थे, तभी अहिंसा पर भी उनके दो व्याख्यान हुए थे- एक विश्वविद्यालय में और एक कटरा बाजार की प्रामसभा में ।
डॉ० भारिल्ल का अहिंसा सम्बन्धी यह व्याख्यान इतना लोकप्रिय है कि विगत दश वर्षों में वे इसे विभिन्न स्थानों पर शताधिक बार दोहरा चुके हैं, फिर भी इसकी माँग निरन्तर बनी ही रहती है। वे जहाँ भी जाते हैं, उन्हें एक व्याख्यान इस विषय पर देना ही पड़ता है। यह इतना सारगभित और रोचक है कि जनता बार-बार सुनना चाहती है, अनेक बार सुन लेने के बाद भी मंत्रमुग्ध होकर सुनती है ।
यद्यपि यह व्याख्यान इतना लम्बा है कि एक घण्टे में समाप्त होना सम्भव नहीं है, अत: वे इसे स्थान और समयानुसार छोटा-बड़ा करते रहते हैं ; पर हमने उसे सम्पूर्ण ही प्रकाशित किया है - इस कारण यह लम्बा भी बहत हो गया है, पर हम क्या कर सकते हैं; क्योंकि इसमें सम्पादन की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।
इसके प्रकाशन की मांग बहुत दिनों से तेजी से चल रही थी। इस कृति के माध्यम से वह भी पूर्ण होगी।
टेप-कैसिटों से संग्रहीत इन प्रवचनों का सम्यक् प्रकार से सम्पादन और परिमार्जन करके इनके प्रवक्ता डॉ० भारिल्ल को एक बार पुनः दिखा लिया गया है। उन्होंने भी इनमें कुछ आवश्यक परिवर्तन, परिवर्द्धन एवं परिमार्जन किया है। इसप्रकार यह संकलन एक प्रकार से सर्वांग हो गया है।