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चौदह गुणस्थान
साहित्य रचना -
स्वामीजी ने अपने जीवन में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की। उनमें आचार की दृष्टि से श्रावकाचार मुख्य है और अध्यात्म की दृष्टि से भयखिपनिक - ममल पाहुड़, उपदेश - शुद्धसार तथा ज्ञानसमुच्चयसार मुख्य हैं। तीन बत्तीसी की रचना भी प्राय: इस दृष्टिकोण से हुई है। सिद्धि स्वभाव ग्रन्थ का अपना अलग स्थान है । मुख अध्यात्म की ओर ही है।
अन्य सब ग्रन्थों की भिन्न-भिन्न प्रयोजनों को लक्ष्य में रखकर रचना हुई है। स्वामीजी का समग्र जीवन अध्यात्मस्वरूप होने से उन सब रचनाओं के द्वारा पुष्टि अध्यात्म की ही होती है। उक्त सब रचनाओं में से ९ रचनाएँ पद्यमय हैं। भाषा की स्वतंत्रता है।
स्वामीजी ने किसी एक भाषा और व्याकरण के नियमों में अपने को जकड़ कर रचनाएँ नहीं की हैं। जहाँ जिस भाषा में अपने हृदय के भावों का व्यक्त करना स्वामीजी को उचित प्रतीत हुआ वहाँ उस भाषा का अवलम्बन लिया गया है।
रचनाओं में प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और बोलचाल की हिन्दी इन चारों भाषाओं के शब्दों का समावेश किया गया है।
अनेक स्थलों पर रचना का प्रवाह गूढ़ हो जाने से स्वामीजी के हृदय की थाह लेने के लिये अथक परिश्रम अपेक्षित है।
स्वामीजी मर्मज्ञ तत्ववेत्ता होने के साथ संगीतज्ञ भी रहे हैं। लगता है कि वे अपने स्वात्मचिन्तन-मनन और जनसम्पर्क के समय अपनी इस सहज प्राप्त सर्वजनप्रिय कोमल कला का बहुलता से उपयोग करते रहे होंगे । ठिकानेसार की तीनों प्रतियों में ममल पाहुड़ की कौन फूलना किस निमित्त किस ग्राम में रची गयी, इसका कुछ विवरण लिपिबद्ध किया गया है; उससे उक्त तथ्य की पुष्टि को पूरा बल मिलता है। इस पर से मुझे लगता है कि स्वामीजी ने अपनी ग्रन्थ-रचना का प्रारंभ ममल पाहुड़ से ही किया होगा।
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श्री जिनतरण- तारण स्वामीजी का परिचय
मुनिपद अंगीकार करने के बाद अवश्य ही उन्होंने अपने यातायात के क्षेत्र को सीमित कर दिया होगा। श्रावक के सात शीलों को स्वामीजी ने पाँच महाव्रतों के साथ मुनि-पद में रहते हुए अपने अधिकतर समय को ध्यान में ही लगाया होगा। स्पष्ट है कि उन्होंने अधिकतर मौलिक रचनाओं का सृजन श्रावक अवस्था में ही कर लिया होगा।
मेरी बहुत समय से यह तीव्र इच्छा रही है कि मैं मध्यप्रदेश बुन्देलखण्ड के इस महान संत के यथार्थ जीवन के विषय में कुछ लिखूँ । इसके लिए मैं कुछ समय से प्रयत्नशील था। मुझे प्रसन्नता है कि अभी तक मैं इस सम्बन्ध की जो थोड़ी सी सामग्री संचित कर सका उसी का यह परिणाम है जो इस रूप में समाज के सामने प्रस्तुत है। अभी इस विषय पर बहुत कुछ काम होना है। मुझे आशा है सबके सहयोग से उसमें अवश्य ही सफलता मिलेगी।
श्री जिन तारण स्वामी ने अपने १४ ग्रन्थों को विशेष ढंग से ५ मतों में विभाजित किया है। संसार में अनन्त मत है परन्तु आत्मकल्याण हेतु ५ मतें स्थापित की हैं :
१. आचार मत में श्रावकाचार
२. विचार मत में - मालारोहण, पंडित पूजा, कमल बत्तीसी ३. सार मत में ज्ञान समुच्चय, सार, उपदेश, शुद्ध सार, त्रिभंगीसार
४. ममल मत में ५. केवल मत में
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पण्डित फूलचन्दजी जैन सिद्धान्तशास्त्री, वाराणसी
- ममल पाहुड़, चौबीसी ठाणा
छद्मस्थवाणी, नाम माला, खातिका विशेष
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