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________________ 84 बिखरे मोती हो? समय रहते आत्महित कर लेना ही बुद्धिमानी है । यह दुनिया तो इसीप्रकार चलती रहेगी। इसमें उलझना ठीक नहीं। गुरुदेव की महान कृपा से हमें वस्तुस्वरूप की रुचि हो गई है, सो हम भी इसी में भला समझते हैं कि उनका भला-बुरा उसके भावों के अनुसार होगा, हमें तो अपने भावों को पवित्र रखना चाहिए। गुरुदेव श्री तो सदा ही कहते रहते हैं कि दृष्टि को जगत से हटाकर अपनी ओर ले आओ, जगत को क्या देखते हो, अपने को देखो। यदि जगत की ओर देखोगे तो राग-द्वेष की ही उत्पत्ति होगी - आत्मा का अहित ही होगा। उत्तेजनात्मक हथकण्डों की उम्र बहुत कम होती है। उत्तेजना में आदमी को अनंत प्रयत्नों के बाद भी बहुत देर तक रखा नहीं जा सकता है। जिसप्रकार पानी को बहुत देर तक गर्म रखा नहीं जा सकता है, वह निरन्तर शीतलता की ओर दौड़ता रहता है, यदि उसे अग्नि का संयोग देते रहकर निरन्तर गर्म रखने का प्रयास किया गया तो वह रहेगा ही नहीं, समाप्त हो जावेगा, भाप बनकर उड़ जावेगा। उसे यदि अधिक काल तक रखना है तो शीतल ही रखना होगा। गर्म रखने के लिए ईंधन भी चाहिए, पर ठण्डा रखने के लिए कुछ भी नहीं चाहिए। इसीप्रकार समाज को शान्त रखने के लिए प्रयत्नों की आवश्यकता नहीं, पर उत्तेजित रखने के लिए निरन्तर प्रयास चाहिए। निरन्तर के प्रयासों से समाज को उत्तेजित रख पाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है, तथा यदि रखने का प्रयास किया गया तो अनेक समस्यायें उठ खड़ी होंगी, जिनसे समाज को बचाना सम्भव न होगा। सत्य की खोज, पृष्ठ-२१६-२१७
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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