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________________ प्रथम खण्ड जिन्हें भूलना संभव नहीं आचार्य कुन्दकुन्द विदेह गये थे या नहीं ? जिन-अध्यात्म के प्रतिष्ठापक आचार्य कुन्दकुन्द का स्थान दिगम्बर जिनआचार्य परम्परा में सर्वोपरि है। दो हजार वर्ष से आजतक लगातार दिगम्बर साधु अपने आपको कुन्दकुन्दाचार्य की परम्परा का कहलाने में गौरव का अनुभव करते आ रहे हैं। आचार्य देवसेन, आचार्य जयसेन, भट्टारक श्रुतसागर सूरि आदि दिग्गज __ आचार्यों एवं अनेकानेक मनीषियों के उल्लेखों, शिलालेखों तथा सहस्राधिक वर्षों से प्रचलित कथाओं के आधार पर यह कहा जाता रहा है कि आचार्य कुन्दकुन्द्र सदेह विदेह गये थे। उन्होंने तीर्थंकर सीमन्धर अरहंत परमात्मा के साक्षात् दर्शन किये थे, उन्हें सीमन्धर परमात्मा की दिव्यध्वनि साक्षात सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था। यहाँ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यदि आचार्य कुन्दकुन्द सदेह विदेह गये थे, उन्होंने सीमन्धर परमात्मा के साक्षात् दर्शन किए थे, उनकी दिव्यध्वनि का श्रवण किया था, तो उन्होंने इस घटना का स्वयं उल्लेख क्यों नहीं किया ? यह कोई साधारण बात तो थी नहीं, जिसकी यों ही उपेक्षा कर दी गई। ___बात इतनी ही नहीं है, उन्होंने अपने मंगलाचरणों में भी उन्हें विशेषरूप से कहीं स्मरण नहीं किया है। क्या कारण है कि जिन तीर्थंकर अरहंतदेव के
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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