SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 बिखरे मोती उन्होंने साक्षात् दर्शन किए हों, जिनकी दिव्यध्वनि श्रवण की हो, उन अरहंत पद में विराजमान सीमन्धर परमेष्ठी को वे विशेषरूप से नामोल्लेखपूर्वक स्मरण भी न करें । इसके भी आगे एक बात और भी है कि उन्होंने स्वयं को भगवान महावीर और अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु की परम्परा से बुद्धिपूर्वक जोड़ा है। प्रमाणरूप में उनके निम्नांकित कथनों को देखा जा सकता है "वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुदकेवली भणिदं । श्रुतकेवलियों द्वारा कहा गया समयसार नामक प्राभृत कहूँगा । वोच्छामि नियमसारं केवलिसुदिकेवली भणिदं । केवली तथा श्रुतकेवली के द्वारा कथित नियमसार मैं कहूँगा । काऊण णमुक्कारं जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स । दंसणमग्गं वोच्छामि जहाकम्मं समासेण ॥ ऋषभदेव आदि तीर्थंकर एवं वर्द्धमान अन्तिम तीर्थंकर को नमस्कार कर यथाक्रम संक्षेप में दर्शनमार्ग को कहूँगा । वंदित्ता आयरिय कसायमलविज्जिदे सुद्धे । * कषायमल से रहित आचार्यदेव को वंदना करके । - वीरं विसालणयणं रत्तुप्पलकोमलस्समप्पावं । तिविहेण पणमिऊणं सीलगुणाणं णिसामेह || विशाल हैं नयन जिनके एवं रक्त कमल के समान कोमल हैं चरण जिनके, ऐसे वीर भगवान को मन-वचन-काय से नमस्कार करके शीलगुणों का वर्णन करूँगा । पणमामि वड्ढमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं । धर्मतीर्थ के कर्त्ता भगवान वर्द्धमान को नमस्कार करता हूँ ।" १. अष्टपाहुड : दर्शनपाहुड, गाथा - १ २. अष्टपाहु : बोधपाहुड, गाथा - १ ३. अष्टपाहुड : शीपाहुड, गाथा - १ ४. प्रवचनसार, गाथा - १ ५. प्रवचनसार गाथा-३
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy