________________
बिखरे मोती
सिद्धान्तशास्त्रों के गहन अध्येता का अभिनन्दन वास्तव में एक प्रकार से सिद्धान्तशास्त्रों का ही अभिनन्दन है । यद्यपि सरस्वती के आराधकों, उपासकों, लाड़ले सपूतों का इन लौकिक अभिनन्दनों की आकांक्षा नहीं होती, होनी भी नहीं चाहिए; तथापि सरस्वती माता की प्रतिदिन वंदना करनेवाली जिनवाणी भक्त धर्मप्रेमी समाज को भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है ।
62
पण्डितजी उस वरिष्ठतम पीढी के प्रतिनिधियों में से एक हैं, जो प्रायः निश्शेष हो चुकी है या निश्शेष होती जा रही है। सिद्धान्तज्ञान के रूप में आज उनके पास जो भी अनुपम निधि उपलब्ध है; हमारा कर्तव्य है कि हम उसका अधिकतम लाभ लें। कोई ऐसा बृहत् उपक्रम किया जाना चाहिए, जिससे उनके ज्ञान को आगामी पीढ़ी के लिए सुरक्षित किया जा सके ।
पण्डित फूलचन्दजी सिद्धान्ताचार्य का सिद्धान्तज्ञानमय जीवन अध्यात्ममय हो, आनन्दमय हो जावे इस मंगल कामना के साथ उन्हें प्रणाम करता
-
भाई ! भारतवर्ष में ऐसे अनेक नग्न दिगम्बर संत मिलेंगे, जिन्होंने जीवन में एक भी गोली नहीं खाई होगी। दिन में एक बार शुद्ध सात्विक आहार लेनेवाले, दूसरी बार जल का बिंदु भी ग्रहण नहीं करने वाले वीतरागी संत सौ-सौ वर्ष की आयुपर्यन्त पूर्ण स्वस्थ दिखाई देते हैं और अपनी पूर्ण आयु को चलते-फिरते आत्मसाधना में रत रहते आनन्द से भोगते हैं; जबकि प्रति दिन अनेक गोलियाँ खाने वाले दिन-रात भक्ष्यअभक्ष्य पौष्टिक पदार्थ भक्षण करनेवाले जगतजन भरी जवानी में ही जवाब देने लगते हैं
इसप्रकार यह अत्यंत स्पष्ट है कि न तो हथियार सुरक्षा के साधन हैं, और न ही भोगोपभोग सामग्री तथा औषधियाँ सुखी होने का वास्तविक उपाय हैं; आयुकर्म का उदय जीवन का आधार है और शुभकर्मों का उदय लौकिक सुखों का साधन है ।
आत्मा ही है शरण, पृष्ठ- ११०