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बिखरे मोती लगा बीरबल था। काम की बातों के अतिरिक्त मैं उनसे व्यंग्य-विनोद भी कम नहीं करता था। भयंकर पीड़ा में भी जबतक एकबार उन्हें खिलखिलाकर हँसा न लूँ; न मुझे चैन पड़ता था, न उन्हें । __ सखाभाव में जिसप्रकार का लड़ना-झगड़ना, हँसना-हँसाना, मिलजुलकर जुटकर काम करना होता है; वैसा ही उनके साथ मेरा भी जीवन भर चला है । उनके अभाव में मैंने एक सच्चा मित्र, सन्मार्गदर्शक अग्रज एवं समर्थ साथी खो दिया है। ___ पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी ने जो अध्यात्मगंगा प्रवाहित की है, उसके पावन जल को देश के कोने-कोने में पहुँचाने का काम जीवन भर आदरणीय बाबूभाईजी ने जिस विधि से किया है, वह अनुकरणीय है, अभिनन्दनीय है। आज जो भी तत्त्वज्ञान का प्रचार-प्रसार हो रहा है। उसमें बाबूभाईजी का योगदान अभूतपूर्व है, अद्भुत है। उनके निर्मल चरित्र, सात्त्विक जीवन, सरल स्वभाव, अनुकरणीय जिनभक्ति एवं अथक परिश्रम ने उन्हें सर्वत्र अबाध प्रवेश दिया था। ___ आज वे हमें छोड़कर अवश्य चले गए हैं; पर अपने पीछे तत्त्वप्रचार का एक सुगठित सशक्त तंत्र छोड़ गए हैं, जिसे हम संगठित रहकर चलाते रह सकें तो उनकी भावनाओं को साकार रूप प्राप्त होता रहेगा। ____ भाई ! संसार का स्वरूप ही ऐसा है – एक दिन हम सबको भी जाना है, दो-चार वर्ष पीछे या दो-चार वर्ष आगे - इससे क्या अन्तर पड़ता है; अतः हम सभी को अपना जीवन इतना व्यवस्थित बनाना चाहिए कि हम प्रतिपल जाने को तैयार रहें, यदि मौत सामने आ भी जाय तो हमें एक समय भी यह विकल्प नहीं आना चाहिए कि जरा ठहरो! यह काम निबटा लूँ। ___ "लाखों वर्षों तक जीऊँ या मृत्यु आज ही आ जावे"- की भावना से
ओत-प्रोत होकर जीने और मरने के लिए सदैव तैयार रहना ही वास्तविक जीवन है। - आदरणीय बाबूभाई ने ऐसा जीवन जिया था, हम सब भी इसीप्रकार शुद्ध, सात्त्विक, सदाचारी एवं आत्महित ही जिसमें मुख्य हो - ऐसा जीवन जिएँ और उनके समान ही धीर-वीर बनकर समाधि मरण के लिए भी प्रतिक्षण तत्पर रहें, सन्नद्ध रहें – इस पावन भावना से विराम लेता हूँ।