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हुए कहा
पर
वे बीच में बोले
मैंने प्रसन्नता व्यक्त करते “विचार तो आपका बहुत अच्छा है, मेरी बात पूरी ही न हो पाई थी कि "काम तो आपको ही करना होगा । " मैंने कहा 44. 'काम से कौन इन्कार करता है? पर ' और किसी बात की चिन्ता न करो, कुन्दकुन्द - कहान तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट जिनवाणी - प्रकाशन में दश लाख की पूँजी लगायेगा । "
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वे बोले
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बिखरे मोती
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उनकी इस भावना को देख मैं गद्गद् हो गया। ऐसी थी उनकी जीवंत - तीर्थ जिनवाणी की भक्ति ।
उनकी भावना और संकल्प का ही परिणाम है कि आज हमारे यहाँ श्री कुन्दकुन्द - कहान दिगम्बर जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट का प्रकाशन विभाग कार्यरत है, जिसमें कुन्दकुन्दादि आचार्यों के अनेक ग्रन्थाधिराज प्रकाशित हो रहे हैं।
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"
इसीप्रकार एक दिन मुझे बुलाकर बोले - "मैं सोचता हूँ कि तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट की ओर से दश विद्वान निरन्तर धर्मप्रचार के लिए सारे देश में घूमते रहना चाहिए।"
""
मैंने कहा 'यह तो बहुत अच्छी बात है, मैं भी बहुत दिनों से सोचता था, पाटनीजी से चर्चा भी की थी; पर कोई रास्ता समझ में नहीं आता था । यह बात तो आपने मेरे मुँह की ही छीन ली है; पर मैं चाहता हूँ कि वे मात्र धर्मप्रचार ही करें, चंदा न करें।"
उन्होंने तपाक से कहा " चंदा की बात कहाँ से लाए?"
मैंने कहा - " समाज में धर्मप्रचारकों के नाम पर चंदा करनेवाले ही घूमते हैं; अतः लोग उन्हें
. वे बोले "मैं जानता हूँ। मेरी भावना चंदा कराने की नहीं; मात्र धर्मप्रचार की है, तत्त्वप्रचार की है। समाज में धार्मिक जागृति बनी रहे - यही मैं चाहता हूँ। मैं तो अब कहीं आ-जा नहीं सकता, पर मैं चाहता हूँ कि समाज धार्मिक दृष्टि से जागृत रहे। समाज के जागृत रहने पर ही तीर्थ सुरक्षित रहेंगे और जीवन्त - तीर्थ जिनवाणी भी सुरक्षित रहेगी । "