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बिखरे मोती
उससे जोड़नेवाले भी वे ही थे । पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा संचालित तत्त्व-प्रचार व प्रसार संबंधी गतिविधियों से सम्पूर्ण जैनसमाज में आज कौन अपरिचित है ? सभी जानते हैं कि आज उसने दिग्दिगन्त में वीरवाणी की, गुरुवाणी की, कहानवाणी की ध्वजा फहरा रखी है। उनके द्वारा तीव्रगति से संचालित विभिन्न प्रकार की तत्त्वप्रचार संबंधी गतिविधियों का ही परिणाम है कि गुरुदेवश्री द्वारा संचालित आध्यात्मिक क्रान्ति आज 'दिन दूनी रात चौगुनी' वृद्धिंगत हो रही है ।
पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा संचालित तत्त्वप्रचार संबंधी उक्त गतिविधियों को स्व. खीमचंदभाई का सक्रिय सहयोग एवं मंगल - आशीर्वाद आजीवन प्राप्त रहा है ।
तीन हजार से भी अधिक धार्मिक-आध्यात्मिक शिक्षक तैयार कर देनेवाले प्रशिक्षण-शिविरों में वे लगातार तबतक निरन्तर आते रहें, जबतक कि एकदम थक नहीं गये । अबतक लगनेवाले १८ शिविरों में से लगभग ८-१० शिविरों में वे अवश्य ही आये होंगे। इसीप्रकार श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय एवं उसके परिवार को भी उनका मंगल- आशीर्वाद एवं हार्दिक स्नेह निरन्तर मिलता रहा है।
यद्यपि जबसे महाविद्यालय की स्थापना हुई, तबसे प्रायः वे शिथिल ही रहे, लगभग अस्वस्थ ही बने रहे ; तथापि वे महाविद्यालय की स्थिति और प्रगति को समीप से देखने के लिए जयपुर पधारे थे ।
तत्त्वरुचि सम्पन्न विद्वानों विशेषकर महाविद्यालय से निकले अल्पवयस्क प्रवक्ता विद्वानों को देखकर उनका हृदय बाँसों उछलने लगता था ।
उनके प्रथम स्मृति दिवस पर प्रकाशित होनेवाले 'जैनपथ प्रदर्शक' के इस विशेषांक ने उपकृत मुमुक्षु समाज को उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करने का, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया है; साथ ही उनके बोलों को, प्रवचनों को यथासंभव संग्रह कर उनके प्रदेय को स्थायित्व प्रदान करने का सार्थक प्रयास किया है।
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मैं इसके माध्यम से उनके हार्दिक स्नेह एवं सक्रिय सहयोग को स्मरण करते हुए उनके प्रति विनम्र श्रद्धाञ्जली समर्पित करता हूँ ।