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________________ 50 बिखरे मोती से सम्पन्न अपने सुयोग्य पुत्र श्री सुमनभाई के पास बम्बई आकर आराम से रह सकते थे; क्योंकि गुरुदेव श्री का साक्षात् समागम तो अब वहाँ है ही नहीं और टेप तो वे घर बैठे भी बड़े आराम से सुन सकते हैं। उनकी कर्मठता एवं लगन का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है ? सोनगढ़ के ये महारथी मात्र व्यवस्था एवं प्रशासन तक ही सीमित नहीं रहे हैं, अपितु ज्ञानाराधना, पठन-पाठन, लेखन, संपादन एवं प्रकाशन में भी आपका अभूतपूर्व योगदान रहा है। अध्यात्म विद्या एवं आगम के उद्धरणों के तो मानों वे चलते-फिरते शब्दकोश ही हैं। उनसे तत्त्वचर्चा करनेवालों को यह भली-भाँति ज्ञात है कि जब वे किसी प्रश्न का उत्तर दे रहे होते हैं, तो आगम उद्धरणों की झड़ी लगा देते हैं । उसीसमय ग्रन्थ के नाम के साथ पृष्ठ संख्या भी तत्काल बताते जाते हैं । तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी उनकी टीका आगम प्रमाणों से भरी पड़ी है। उनकी .' धर्म की क्रिया' आदि कृतियाँ भी अवलोकनीय ही नहीं, मननीय हैं। सोनगढ़ में तैयार हुए शताधिक प्रवचनकारों के वे आद्य विद्यागुरु हैं; क्योंकि सोनगढ़ में जब से शिक्षण शिविर आरंभ हुए हैं, तभी से उत्तम कक्षा में अध्यापन का कार्य वे और आदरणीयं श्री खीमचंदभाई ही करते रहे हैं । उनकी कक्षा सदा गुरुदेव श्री के समक्ष स्वाध्याय मंदिर में ही लगा करती थी I आत्मधर्म के आद्य संपादक होने से गुरुदेवश्री की वाणी का लेखन, संपादन एवं प्रकाशन कर जन-जन तक पहुँचाने के भागीरथ कार्य की भी आपने ऐसी ठोस नींव रखी कि वह आज तक फल-फूल रही है। उसकी ऐसी मर्यादायें स्थापित कीं, जिनके सहारे चलने में उत्तराधिकारियों को कोई कठिनाई ही नहीं रही । मैं अपने को बड़ा ही सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे आदरणीय पू. बापूजी से अध्ययन करने का भी अवसर प्राप्त हुआ है; जिस आत्मधर्म के वे आद्य संपादक रहे, उसके संपादन का भी अवसर प्राप्त है तथा पूज्य गुरुदेव श्री
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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