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सम्पादकीय
सर्वोदय स्वाध्याय समिति बेलगांव (कर्नाटक) ने जब डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय लिया, तब समयसारादि समग्र कुन्दकुन्द साहित्य का कन्नड भाषा में अनुवाद करने वाले पण्डित श्री एम. बी. पाटील (शेडबाल) बेलगांव ने मुझे अपना निम्न प्रकार विचार बताया था, जिसका मैंने तत्काल समर्थन भी किया था।
डॉ. भारिल्ल के फुटकर रीति से लिखित साहित्य को भी अभिनंदन समारोह के निमित्त से पुस्तकरूप से प्रकाशित करना चाहिए ।
उपर्युक्त निर्णयानुसार मैंने डॉ. भारिल्ल के लेख खोजना प्रारम्भ किया । शोध-खोज के बाद यह बात स्पष्ट हुई कि बहुतांश लेख धर्म के दशलक्षण, बारह भावना इत्यादि तो पुस्तकरूप से प्रकाशित हो ही चुके हैं। और विशेष तलाश करने के बाद पता चला कि जंब जैनपथ प्रदर्शक पाक्षिक विदिशा से निकलता था, तब 'दूध का दूध और पानी का पानी' शीर्षक के अन्तर्गत विवेकी के नाम पर लिखे गये सर्व लेख भी डॉक्टर भारिल्ल के ही हैं । अतः इसमें उन लेखों का भी संग्रह किया ।
आचार्य कुन्दकुन्द, पण्डित बनारसीदास आदि विशेषांकों में लिखे गये उनके लेख हैं। सर्वश्री रामजीभाई, खेमचंदभाई, बाबूभाई, पूरणचंदजी गोदीका आदि पर भी आपने कलम चलाई है ।
आध्यात्मिक संत गुरुदेव श्री कानजीस्वामी के स्वर्गारोहण के निमित्त से अनेक लेख लिखे गये हैं। सोनगढ़ जयपुर से प्रकाशित साहित्य को मंदिर में रखना या नहीं रखना - इस विषय को लेकर भी आपने अनेक लेख लिखें हैं, जिनमें डॉक्टर भारिल्ल की विशिष्ट रीति-नीति स्पष्ट हुई है ।
इन सबका संग्रह करना प्रारंभ किया तो मुझे आश्चर्य हुआ कि कुल मिलाकर ४१ लेख इकट्ठे हो गये। लगता है खोजबीन करने पर अभी और