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महावीर वन्दना डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं। जो विपुल विनों बीच में भी, ध्यान धारण धीर हैं। जो तरण-तारण भव-निवारण, भव-जलधि के तीर हैं। वे वन्दनीय जिनेश, तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं।
जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में। जिनके विराट् विशाल निर्मल, अचल केवलज्ञान में॥ युगपत् विशद सकलार्थ झलकें, ध्वनित हों व्याख्यान में। वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में।
जिनका परम पावन. चरित, जलनिधि समान अपार है। जिनके गुणों के कथन में, गणधर न पावैं पार है। बस वीतराग-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है। उन सर्वदर्शी सन्मती को, वन्दना शत बार है।
जिनके विमल उपदेश में, सब के उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है॥
आतम बने परमात्मा, हो शान्ति सारे देश में। है देशना-सर्वोदयी, महावीर के सन्देश में॥