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________________ 19 कविवर पण्डित बनारसीदास चौगुनी फली-फूली। कहा तो यहाँ तक जाता है कि समयसार नाटक और बनारसी-विलास के कवित्त जैनाजैन जनता में इतने लोकप्रिय हो गये थे कि आगरा आदि नगरों की गली-गली में गाये जाने लगे थे। उक्त बात की पुष्टि समयसार और आत्मख्याति के भाषाटीकाकार पण्डित जयचंदजी छाबड़ा के आज से १८० वर्ष पूर्व लिखे गये निम्नांकित कथन से भी होती है - "दूसरा प्रयोजन यह है कि इस ग्रन्थ की वचनिका पहले भी हुई है, उसके अनुसार बनारसीदास ने कलशों के देशभाषामय पद्यात्मक कवित्त बनाये हैं, जो स्वमत-परमत में प्रसिद्ध भी हुए हैं । उन कवित्तों से अर्थ-सामान्य का ही बोध होता है। उनका अर्थ-विशेष समझे बिना किसी को पक्षपात भी उत्पन्न . हो सकता है। उन कवित्तों को अन्यमती पढ़कर अपने मतानुसार अर्थ भी करते हैं । अतः विशेषार्थ समझे बिना यथार्थ अर्थ का बोध नहीं हो सकता और भ्रम मिट नहीं सकता। इसलिए इस वचनिका विर्षे यत्र-तत्र नयविभाग से अर्थ स्पष्ट खोलेंगे, जिससे भ्रम का नाश होगा।" ___ 'बनारसीविलासं' में पीताम्बर कवि की ज्ञानबावनी संकलित है, जिसमें ५२ इकतीसा सवैया हैं । इसके संबंध में कहा जाता है कि आगरे में कपूरचन्दजी साहू के मंदिर में एक सभा जुड़ी हुई थी, जिसमें बनारसीदासजी के अनन्य सहयोगी कँवरपाल आदि भी थे। उसी समय बनारसीदासजी के वचनों की चर्चा चली। उन सबकी आज्ञा से पीताम्बर ने यह ज्ञानबावनी तैयार की। इसका पचासवाँ छन्द. इसप्रकार है - "खुसी है के मंदिर कपूरचन्द साहू बैठे, बैठे कौरपाल सभा जुरी मनभावनी । बानारसीदासजू के वचन की बात चली, याकी कथा ऐसी ग्याता ग्यान मन लावनी ॥ गुनवंत पुरुष के गुन कीरतन कीजै, __ पीताम्बर प्रीति करि सज्जन सुहावनी । वही अधिकार आयौ ऊँघते बिछौना पायो, हुकम प्रसाद तैं भई है ज्ञानबावनी ॥५०॥ १. समयसार, प्रस्तावना
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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