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गोली का जवाब गाली से भी नहीं
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प्रति हमारी आस्था है, उसकी यह दुर्दशा आपने की है। क्या यह शोभा की बात है? यदि इतनी ही दिलेरी आप में है तो कुराण को ऐसा करके बतायें, रामायण को ऐसा करके बतायें, तो आपको सब मालूम पड़ जायेगा। इनमें विद्यासागरजी की फोटो है, किताबें हैं। जिनवाणी के प्रति उपेक्षा का परिणाम का फल क्या हो सकता है? लेकिन वे बेचारे क्या करें? उनके दिमाग में कहीं से यह भ्रम खड़ा हो गया है कि इसमें जहर मिला दिया है हमने ।
अरे! वे तो बेचारे अपनी समझ में जैनधर्म की रक्षा कर रहे हैं। वे यह नहीं समझते हैं कि इस रक्षा के चक्कर में कहीं अनर्थ तो नहीं हो रहा है? वे तो समझाने के पात्र हैं। वे कण्टक हैं, अत: उन्हें मसल देना, हटा देना ऐसी भाषा यह जैनियों को शोभा नहीं देती है।
किसी क्षत्रिय से पूछो 'व' का ब बनाना हो तो क्या करना पड़ता है, तो वह कहता है कि पेट चीर दो । बनिये से पूछो तो कहता है कि पेट भर दो। चीरने की भाषा - ये जैनियों की भाषा नहीं है । उसको तो हर समस्या का समाधान भरने से सूझता है । ये दिगम्बरों की भाषा नहीं है, ये महावीर की भाषा नहीं है, ये कुन्दकुन्द की भाषा नहीं है।
एक भी भाई हमसे जुदा हो - यह सोचने के आदी हम नहीं हैं ।
भाई ! एक दिन हम भी तो स्वामीजी के विरोधी थे। हमारी समझ में विषय आ गया तो हम अनुकूल हो गये । आप में से जो स्वामीजी के बड़े पक्षधर हैं, आज जिनकी आँखों में आँसू हैं; वे छाती पर हाथ रखकर बतायें कि जब तुम्हें यह बात पसन्द नहीं थी तो तुमने कितना विरोध किया था । जब समझ में आया तो पक्ष में हो गये। भाई ! किसी को आज समझ में आया है, किसी को कल आयेगा, किसी को परसों समझ में आयेगा । इसलिए किसी कण्टक को समाप्त करने की बात हम तो सोच भी नहीं सकते हैं।
हम तो बहुत से बहुत आगे बढ़ेंगे तो यह सोच सकते हैं कि यदि समाज में शांति से रहकर हम अपनी धर्म साधना, साहित्य की आराधना और स्वाध्याय नहीं कर सकते तो अलग बैठ कर स्वाध्याय करें। बस इससे ज्यादा हम सोच