________________
176
बिखरे मोती नहीं आ रही है और उन्हें ऐसा लग रहा है कि हम समाज को/धर्म को बर्बाद कर रहे हैं। यदि सचमुच उनको ऐसा नहीं लगता तो इतना बड़ा काम वे नहीं करते। क्या वे नहीं जानते हैं कि सुभौम चक्रवर्ती ने णमोकार मंत्र को पानी में हाथ से लिखकर पैर से मिटा दिया था। इसके परिणाम स्वरूप वे सातवें नरक में गये थे। यह जिनवाणी जो अभी यहाँ रखी है वह साक्षात सर्वज्ञ भगवान की वाणी है, कुन्दकुन्द की वाणी है; आप देखना, इसमें विद्यानन्दजी महाराज की भी पुस्तकें हैं। एक उत्तर भारत में जयसागरजी महाराज हैं, दक्षिण (कुंभोज बाहुबली) में एक समन्तभद्रजी महाराज हैं। हम उनके पास जाते ही हैं। विद्यासागरजी महाराज हमारे साथ में केसली पंचकल्याणक में थे ही। ___ अब जो हमको गैर-दिगम्बर घोषित करें। जगह-जगह हमें निकालने की बात करें । हम उनके पास क्यों जायें, कैसे जायें; उनसे हमारा मेल कैसे बैठे? हम तो बहुत प्रयत्न करते हैं, लेकिन वह मेल बैठता ही नहीं। हम तो परसों से यहाँ आये हैं और इसी प्रयत्न में थे; लेकिन जैसा उत्तेजना का वातावरण अभी यहाँ है - ऐसे में हमारी हिम्मत तो नहीं पड़ी कि हम उस आग में कूद जायें। हमने कहा भी कि भाई! थोड़ा यह वातावरण शांत हो तो हम चलें, ऐसे अशान्त वातावरण में बात करने से कोई लाभ नहीं होता। इसलिए किसी के प्रति विरोध की बात तो है ही नहीं।
एक बात हम बता दें कि यह हमारी प्रतिज्ञा है और हमारे सारे प्रवक्ताओं को निर्देश भी हैं कि कोई किसी की निन्दा न करे। हमारी तरफ से किसी की निन्दा तो हम करते ही नहीं हैं। कोई बताए कि किस मुनि की हमने निन्दा की? हमारे प्रवचनों के कैसेट बनते हैं। पूरे साल भर हम आठ महीने घूमते हैं । सब जगह कैसेट बनते हैं । हमारा साहित्य भी उपलब्ध है। हम किसी की व्यक्तिगत निन्दा करते हों तो कोई निकालकर बताये।
भाई! हमें भी किसी के प्रति श्रद्धा है। जैसी किसी के प्रति श्रद्धा आपकी है तो किसी के प्रति हमारी भी है। हमारी श्रद्धा श्री कानजी स्वामी के प्रति है। उनके प्रति कोई अपशब्द बोले तो हमें कैसा लगेगा? क्या हम पत्थर के बने हुए हैं? अरे भाई! हम आपके ही तो भाई-बन्धु हैं। जिस जिनवाणी के