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________________ गोली का जवाब गाली से भी नहीं 173 और उन सब 8 ट्रस्टियों ने इस्तीफा दे दिया। उसके बाद जो भी काम सोनगढ से हुऐ हैं, उन कामों से न हमारा कोई संबंध है, न सहयोग है, न हमारी अनुमोदना हैं । रही बात हमारे आध्यात्मिक गुरु श्री कानजी स्वामी की। उन्होंने हमें जो अध्यात्म की शिक्षा दी है, उन्होंने जो वीतरागी तत्त्वज्ञान हमें दिया है; उसके लिए हम उनके ऋणी है और उन्हें हम अध्यात्म-विद्या के गुरु मानते हैं, 'देवशास्त्र - गुरु' वाले गुरु नहीं । यह ध्यान रखिए मैंने स्वयं श्री कानजी स्वामी से इन्टरव्यू लिया था, उस वक्त मैं आत्मधर्म का सम्पादक था, उसमें वह छापा भी था । उसमें यह बात उनसे पूछी थी कि आपको लोग 'गुरुदेव' क्यों कहते हैं? तो उन्होंने कहा था कि मैं 'देव-शास्त्र-गुरु' वाला गुरु नहीं हूँ । लोग मेरे से अध्यात्म सुनते हैं, इसलिए जैसे - रविन्द्रनाथ ठाकुर को गुरुदेव कहते हैं, गोपालदासजी बरैय्या को गुरुजी कहते थे- ऐसे ही लोग मुझे कहते हैं। मैं तो देव - शास्त्र - गुरु वाले गुरुओं का दासानुदास हूँ । हम उन्हें अपना विद्यागुरु मानते हैं । जैसे हम भी अपने बच्चों को, विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं ना, तो वे भी हमें अपना गुरु मानते हैं तो हम देवशास्त्र-गुरु 'वाले गुरु थोड़े ही हो गये । हम तो आप जैसे ही गृहस्थ हैं । यह बात जब हम कह रहे थे, तब हमारे ब्रह्मचारीजी प्रद्युम्नकुमारजी ईसरी भी वहाँ मौजूद थे। उन्होंने कहा कि फिर वहां से प्रकाशित साहित्य को आप प्रकाशित क्यों करते हैं ? इस बात को भी आप स्पष्ट कर दीजिए । देखो भाई, यह समयसार है और इसकी संस्कृत में आत्मख्याति टीका 1000 वर्ष पहले आचार्य अमृतचन्द्र ने बनाई । जयपुर के पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा ने हिन्दी टीका बनाई। यह हिन्दी टीका आज से पिच्यासी (85) वर्ष पहले कारंजा के भट्टारकजी ने छापी। उसी टीका को सोनगढ़वालों ने छापा। अब उन्होंने छापना बंद कर दिया; क्योंकि हिन्दी प्रान्त से उनका सम्बन्ध कट गया है । हिन्दी प्रान्त में अब उनका कोई नहीं है, न ही उनका साहित्य बिकता है, न कोई लेता है । अतः कुन्दकुन्द के ग्रन्थ जब मिलना बन्द हो गये तो यह .
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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