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श्री खीमचन्दभाई : एक असाधारण व्यक्तित्व (खीमचन्दभाई स्मृति विशेषांक, जैनपथप्रदर्शक अगस्त द्वितीय १९८४ से)
पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के भागीरथ प्रयास से प्रवाहित आध्यात्मिक ज्ञानगङ्गा में आकण्ठ निमग्न चार लाख मुमुक्षु भाई-बहिनों एवं शताधिक आध्यात्मिक प्रवचनकार विद्वानों में आज ऐसा कौन है, जो आदरणीय विद्वद्वर्य श्री खीमचंदभाई जेठालाल शेठ से अपरिचित हो, अनुग्रहीत न हुआ हो; सोनगढ़ में प्रतिवर्ष श्रावणमास में लगनेवाले आध्यात्मिक शिक्षण शिविर के अवसर पर उनकी कक्षा में न बैठा हो और जिसने उनसे कुछ-न-कुछ न सीखा हो? __ हो सकता है उनसे साक्षात न भी सीखा हो, तो भी उनके शिष्य-प्रशिष्यों से तो सीखा ही होगा; प्रत्येक आत्मार्थी मुमुक्षु उनसे उपकृत अवश्य हुआ है, अनुग्रहीत अवश्य ही हुआ है। जो भाई उनके जीवनकाल में कदाचित् सोनगढ़ न भी पहुंच पाये हों, पर उन्होंने भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में स्थान-स्थान पर होनेवाले उनके प्रवचनों का लाभ तो लिया ही होगा। ___ यही कारण है कि भारतवर्ष के कोने-कोने में बसनेवाले मुमुक्षु भाइयों को आज भी उनके बोल याद आते हैं । अध्यात्म जैसे दुरूह विषय को वे बोलों के माध्यम से जन-जन को कण्ठस्थ करा देते थे। आध्यात्मिक प्रवचनों और कक्षाओं के अतिरिक्त उनका स्नेहिल-व्यवहार भी मुमुक्षु भाई-बहिनों को उनकी ओर सहज ही आकर्षित करता था।
पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी की अध्यात्मधारा से हिन्दी जगत को गहराई से परिचित करानेवाले आद्यप्रवक्ता श्री खीमचंदभाई ही थे। सोनगढ़ में